Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 59
________________ गोडी, जीरा उलि पास । वंदुं वर का गई। फल व धि रावण नउ प्रताप । जे जगि सहु जाणई। राज ग्रि ही, वि भार गिरे। वंदउ वीर जिणंद । महुरी पास सामि नमि । पामउ परिमाणंद ॥५॥ . एकल्लमल्ल चोलेर पास । चउ-गइ निवारण। वि झोल्या छइ पास नाथ । भव-सायर तारण । मांड लिग ढि महिमा निधान । वंदु सुविहाणि । नाडो लि रा आ विहार । ते जग सहु जाणइं। नडु लाई आ नित्य वंदसु ए। जिहा छे जिणवर देव । कुंभल मे रई छई आदिनाथ । इंद्र करई जस सेव ॥६॥ नलिणि-विमाण समाण । राणपुरि वंदों घडमुखे। नवपल्ल व नई चित्र को टि । जिन वंदो शिवसुखे । मांड पि वंदउ श्री सुपास । म ग सी, नवसारी य । विजान गरी, ईड रि युगादि । व ड न गरि जुहारिय । आरास णि, अबु द सिहिरे । वंदो विमल विहारि । नाण इ नइ वली ना दिय । जीवित स्वामि जुहारि ॥७॥ सेत्रुजानी स म वडो । देव दीठो लोटा गई । वंदु बंभ ण वा डि वीर । जिणवर जे ध्याणई । अवर जि के छै गामि ठामि । ते सवि हुं जिणाले । सी रोही श्री आदि प्रमुख । वंदु त्रिहुं काले । इम तीरथ खेमो भणे ए । जे वंदई एक चंत । ते अजरामर पद लहै । पामे सुख अनंत ॥८॥

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