Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi Publisher: Gujarat VidyasabhaPage 49
________________ १६ कि तूं च्यारि मुखि क्यार परि धर्म भाख्यो, कि तें नरय पडत भव्य लोक राख्यो । कि तू संघ चतुर्विध सबल थाप्यो, कि तें मुगतिनु मार्ग तस वेगि आयो || १०७ ॥ कि तें कर्म-रज सयल साथै नीवारी, कि ते वेग वरीउ जइ मुगति नारी । अछेदो, अभेदो, कितु आप बुधो, कि ते एक शत आठ ना मे प्रसीधो ॥ १०८ ॥ कि तूं जिनवरो, परम शंकरो, स्वामी, कि तें शरणदातार, शिव - गति - गामी । कि तुं देव-देवो, परम शक्ति धारी, कि तुं श्रोकरो, सर्व विघ्नापहारी ॥ १०९ ॥ कि तूं सर्व सिद्धि प्रदो, स्वयंसिद्धो, कि तें सर्व-काम-प्रदो, परमशुद्धो । कि तू सर्व सत्त्व- हितो, जगन्नाथो, कि ते निर्विकारो, निरामयो, नाथो ॥११०॥ कि तूं शिवो, योगी, चिदानंदरूपो, कि ते स्फटिकसंकाश, परमस्वरूपो । कि तू परमार्थप्रदो, परब्रह्मो, कि तुं लोकालोकावभासो, अजिह्मो ॥१११॥ कि तू अजो, परमेश्वरो, परमात्मा, कि तूं शंभु विश्वेश्वरो, प्रमोदात्मा । कि तूं परो, परमद्युति, प्रकाशात्मा, कि तूं दिव्यतेजोमयो, ज्ञानात्मा ॥ ११२ ॥ कि तू सर्वोत्तम. श्रीनिवासो, कि तें सर्वगो, परब्रह्मप्रकाशो | कि तू सर्वदर्शी च सर्वज्ञ, एको, कि तूं अजर, अमरो, अनंतो, अनेको ॥११३॥Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114