Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 48
________________ कि तूं शम वि न य सरल संतोष शूरा कि तें क्रूर को धा दि सवि कीघ दूरा । कि तू शी ल सेलहत्थे म द दूरि काढ्यो कि ते वस्तु - सुविचारे चार्वा क पाड्यो ॥१००। कि तू पर परिवा द शुभध्या ने धोयु कि ते सुगुरु - उपदे शे अमरिन द्रोह्यं । कि तु रंगि ऋजुभा वि करि छद्म छेद्यो कि तूं शुद्ध आ चारे पाखंड भेद्यो ।।१०१।। कि तूं सि द्धि बुद्धि अरति रति मान गाल्यो कि तें सु गुण निर्गुण - सभा संग टाल्यो । कि तूं आ गमार्थे परिग्रह प्रणास्यो कि तूं क्रि या करि सर्व कंद ल विणास्यो ।।१०२।। कि तूं सबल संवेग लीधुं सखाइ कि तूं पोसीउ निपुण निर्वेद भाइ। कि तु सप्त तत्त्वे हरियां व्य स न साते कि तु शत्रु सेना हणी सव माते ॥१०३॥ कि तु सबल संग्राम घट मांहे कीधो कि ते मोह भड भंजिउ जगी प्रसीधो। कि तुं मुक्ति ने काजए मति मंडि कि ते चेतना चित्त थी किही न छंडी ॥१०४!। कि तू पिंड ब्रह्मांडनी पइर बूझी, कि तें वात त्रिहु भुवननी सकल सूझो । कि तू झलकतो के व ल ज्ञान पायु, कि ते तेज जग त्रिणि मांहि न पायुं ॥१०५।। कि तू सयल देवे मिली पाय वंद्यु, कि तें त्रणि गढ मांहि आव्यो आणंद्यु। कि तू रयण सीहासणे, स्वामी, सो, कि तूं छत्र सिर, चमर ढालंति जोयु ॥१०६॥

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