Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 46
________________ १३ कि तूं मात वामा सणुं मन राख्यो कि तें तात ने वचन वैराग्य भाख्यो । कि तूं राज्य नरकांत जाणी न लीधुं कि तें गंगाजल पाइ पवित्र कीधुं ॥ ८६ ॥ कि तू सयल संसारनं सूख छांडो के तुं वनि जइ घोर महातप मांडयो । कि तूं कमठ उपसर्ग आव्ये न भागो कि तें क्षमारस राखिवा रंगि लागो ||८७।। कि तूं धीर थइ योग महाध्यान बेठो कि तें सकल योगींद्र मन- कमल पेठो । कि तूं मन वचन काय ना योग रूधी कि तें पांच इंद्रिय तणा पंथ बंधी ||८८ || कि तूं पवन पूरी रहीउ परम ध्याने कि तूं च्यारे पखि व्यापीउ चतुर ज्ञाने । कि तूं अंतर आत्म ध्यान आणी कि तें खरी षट्चक्रनी युगति जाणी ॥ ८९ ॥ कि तूं च्यार - दल - चक्र आधार थोभी कि तें षड्-दलो लिंग, दस- दलो नाभी । कि तूं कंठे, हृदये, दलं, बार, सोलं कि तें दोइ भ्रमध्य दीठो अमोल ||९० || कि तूं मांइ वर्णावली दले दीधी कि तें कमल रोलंबनी श्रेणी कीधी । कि तू कुंडली शक्ति सूती जगाडी कि तें पान पीयूष पुरी पमाडी ॥ ९१ ॥ कि तू जइ वस्यो सहस्र - दल - कमल मध्ये कि तें तृप्ति पाम्यो तही तेज ॠद्धे । कि तूं नाद अनहद वाजित्र रातो कि तूं पान पीयूष करी पूर्ण मातो ||१२||

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