Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 42
________________ रूपक सारसी छंद ॥ गुण-राशि मानव कवण गाइ ? गयण जो अंगुली गुणे, जल सयल सायर लहरि लेखे करी जो आपे मुणे । करि कोडि रसना, सुयश ताहारू न कहे सर्व पुरदरो, जागतु महिमा जगत्र जाणे पास तू शंखे स रो ॥५९।। कल्पांत-काले जल उलच्ये सयल सायरनुं यदा नीपन्न घणी रयणह-राशि दीठो, मान नवी थाइ तदा । तुह गुण अलेखे तिम देखे, कही न सके गणधरो जागतु . ॥६०॥ दारिद्र रुद्र समुद्र माहि बाल बुडा बापडा करगरे कायर अन्न पाखे, न लहे चोपड कापडा । तुह नाम तिह घर अलवि आवी लच्छि, रहे थिर थावरा जागतु ० ॥६॥ ज्वर दाघ घण्या, सइरी-सूण्या, को ढे रोढा थइ रया, हग करण नाशा, गमी आशा, चरण पाणि गलि गया। तुह पांय वंदणि होइ तखिण रूपे जेहवो रतिवरो जागतु ० ॥२॥ कल्लोल सा य र जै ऊछाल्यां, वाहण जई अंबर अडे, माहा वायु वाते खंड थाते; नाम जु तुह मुहि चडे । तुं कुसल खेमें नवल प्रेमें आणी मेले परिकरो जागतु ० ॥६३॥ विकराल झाला अग नि-ज्वाला पनि पसरी चिहु दिशे खिन माहे बालें नयर पुर घर, नंत्र-बल नावे वसें । तुह नाम-जल उल्हवे अलवे अस्यु दावानल भरो । जागतु ० ॥६४॥ फुफई फणि, विष झाल वरसें, लोल दील लबकावतो यम-जीह कालो अतिविकरालो सयल जग बीहारतो ।

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