Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

Previous | Next

Page 36
________________ १ श्रीशद्धेश्वर-पार्श्वनाथ-छंद श्रीनयसुन्दर-कृत (सं १६५६) आर्या॥ वन्दे श्री शङ्खे श्वर पार्श्व सङ्कल्पकल्पतरुकल्पम् । विश्राणित-सुरतल्पं ह्यविकल्पानल्पसञ्जल्पम् ॥१॥ जल्पाम्यहमेनं मामापद्तमा श्व से न संरक्ष। भूयादत्र परत्र च नाथ त्वचरणयोः शरणम् ॥२॥ शरणं वृजिनविमुक्तं भावत्कं भक्तसार्थसंरक्तम् । अणिमादिभिरभियुक्तं दद्या मे देव दिननक्तम् ॥३॥ दिननतं भक्तजनानष्टभयेभ्योऽवतात् कृपासिन्धो । संसारजलनिधेरपि भव्यांस्तारय जगद्वन्धो ॥४॥ बन्धुस्त्वमेव जननी जनको मित्रं सखा त्वमेव पतिः । गुरुरपि दाता भ्राता त्वत्तोऽन्यः कोऽपि न त्राता ॥५॥ त्रातमी विजयं न य सुन्दर सर्वत्र शाश्वतश्च पदम् । भावद्रव्यारिमिमं वारय विश्वकवीर विभो ॥६॥ विभुतां विद्वत्संसद्यनवद्यां विद्यमान-सद्विद्यां । विद्यां सम्पत्सा दद्यास्त्वं देव देवेश ॥७॥ इत्यार्यासप्तकम् ।। पूर्वछायु ॥ देव देव त्रिहूं भुवन तुं अवर नही कोइ ईस । स्वर्ग मृत्यु पाताल तुह यश जागतो जगदीस ।।८।। रूपक मडयल छंद ॥ जगदीसं सखे स र पासं प्रगट प्रमाणे पूरे आसं । गुणोल्लसित शुद्ध मतिमाने जुं वाणी तूसे वरदानें ।।९।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114