Book Title: Tirthankar Mahavir Author(s): Subhadramuni Publisher: University Publication New Delhi View full book textPage 9
________________ काव्य-रचना व प्रकाशन के अवसर मेरे जीवन में भले ही कम आये हों, पर कवियों व कविताओं से आत्मीय सम्बन्ध के संयोग प्रभूत मात्रा में उपलब्ध होते रहे। श्रद्धाशील महावीर प्रसाद जी 'मधुप', डॉ० मोहन मनीषी, डॉ० रघुवीर प्रसाद जी सरल (भिवानी), श्री ओमप्रकाश ‘हरियाणवी', विनय देवबन्दी, डॉ० विनय विश्वास, अशेष जी आदि कविजन समय-समय पर गुरु-चरणों में आते रहते हैं और उनकी रचनायें सुनने के साथ-साथ काव्य-चर्चा के क्षण भी मुझे सहज ही मिलते रहते हैं। इसके अतिरिक्त परम पूज्य गुरुदेव श्री की काव्य-कृतियों, 'ऋतम्भरा', 'मंदाकिनी', 'कादम्बिनी' एवम् अन्य स्फुट रचनाओं, के प्रकाशन-क्रम में उन्हें पढ़ने तथा व्यवस्था की दृष्टि से देखने का सौभाग्य भी मुझे मिलता रहा। आज भी गुरुदेव को जब कभी कुछ लिखना होता है तो वे मुझे कागज-कलम लाने का आदेश देते हैं। मैं समझ जाता हूँ कि गुरुदेव कोई मूल्यवान धरोहर प्रदान करने जा रहे हैं। काव्य से मेरे सम्बन्ध का एक रूप यह भी है। अब...इस सम्बन्ध का नवीनतम रूप-प्रस्तुत पुस्तक। महावीर जयंती के पुनीत अवसर पर इस वर्ष 'श्री सम्बोधि' पत्रिका का काव्य-विशेषांक प्रकाशित करने की योजना बनी। पूर्व-रचित कविताओं का, विशेष रूप से, भगवान् महावीर के जीवनाधार पर रचित काव्य का, स्मरण आया। उस काव्य के कुछ अंश पत्रिका में प्रकाशित भी हुए। उसी क्रम में प्रस्तुत काव्य पूर्ण हुआ। नाम ऊँचा- 'प्रकाश-पर्वः महावीर'। सम्बोधि (मासिक) के यशस्वी सम्पादक तथा सुप्रसिद्ध कवि श्रद्धाशील डॉ० विनय विश्वास ने इस पुस्तक का सम्पादन किया। मुनिरत्न श्री अमित मुनि जी ने अपनी कलात्मकता से इसे व्यवस्था दी और यह सचित्र कृति रूपायित हुई। प्रिय शिष्य अनुज के० भटनागर ने इसका चित्रांकन किया। मेरे परम पूज्य गुरुदेव श्री रामकृष्ण जी महाराज का अविरल स्नेह ‘प्रकाश-पर्वः महावीर' के शब्द-शब्द में समाया है। अस्वस्थ स्थिति में भी उन्होंने इसे पूर्णतः सुना। इसमें शेष त्रुटियाँ दूर की। अपने अमूल्य शब्द-माणिक्य इसे प्रदान किये। गुरुदेव के मंगलमय पथ-प्रदर्शन के अभाव में यह कृति कदापि पूर्ण न हो पाती। मेरा रोम-रोम कृतज्ञ है—परम पूज्य गुरुदेव के प्रति। भगवान महावीर प्रकाश के ऐसे पर्व थे, जिसमें सभी भेदभाव भूलकर अनन्त जीव जीवन्त उल्लास के साथ सम्मिलित हुए। इस प्रकाश-पर्व से अन्य तिमिराच्छन्न जीवों का भी उत्थान हो, इसी मंगल-भावना के साथ । -सुभद्र मुनि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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