________________
बीजाक्षर एवं उनका महत्त्व
[१७ साधक पर अनुग्रह की पुष्टि हो उसके विग्रह होकर स्वर व्यञ्जनों से मिलकर शक्ति के केन्द्र की समाप्ति हो जाती है।
बन जाते है, एवं निरन्तर-उच्चारण से स्फोटवैसे तो अ से लगाकर ह पर्यन्त सारे ध्वनि पैदा कर शक्ति का सर्जन करते है। अक्षर सिद्ध है । कहा गया है कि " निर्बीजम- यही शक्ति-इच्छित कार्य की पूर्ति में सहाक्षरं नास्ति' (बीज-रहित कोई अक्षर नहीं है) | यक बनती है । और ' नास्त्यनक्षरं मंत्रम् ' (अक्षर-रहित कोई ।
यह शक्ति-विसर्जन तरंगाकार होता है, एवं मंत्र नहीं ) अर्थात् अक्षर में अपरिमित शक्ति प्रयुक्त बीजाक्षर की प्राणवत्ता के सदृश भावनिहित है । पर उन्हें बीजाक्षर बनाने के लिए |
वलय का निर्माण कर तदनुसार फल-प्रदान उनमें नाद का व्यक्त रूप मिलाना पड़ता है।
करवाने में सहायक बनता है। ___ यह नाद उनमें दो रूपों में मिलता है
अक्षर बीजों का स्वरूप इस प्रकार है :एक अनुस्वार एवं दूसरा विसर्ग के रूप में ।
* - मृत्युनाशन ये अनुस्वार एवं विसर्ग मंत्र में शिव-शक्ति
आँ – आकर्षणकारी का काम करते हैं एवं फल-प्राप्ति में सहायक
ई - पुष्टिकर बनते हैं । जैसे अं अः ।
ई - आकर्षणकारी अं से हम शक्ति का संचयन का काम उँ - बलवर्द्धक करते हैं, अर्थात् स्फोट-ध्वनि पैदा कर अनुगुंजन | ॐ - उच्चाटन के लिए मुँह बन्द कर देते हैं। एवं अः से विस
* – क्षोभकारी र्जन करते हैं अर्थात् उस संचित-शक्ति को कार्य
* - सम्मोहक सिद्धि के लिए खर्च करते हैं।
लँ – विद्वेषकारी जैसे अणुबम में न्यूट्रोन एवं प्रोटोन नाभि ल - उच्चाटनकारी में स्थित होते हैं, एवं इलेक्ट्रोन नाभि के चारों एँ - वश्यकारी
ओर विशेष कक्षों में चक्कर लगाते हैं. वैसे ही ऐ - पुरुषवश्य अनुस्वार एवं विसर्ग नाद रूप में नाभि में अव- ओ - लोकवश्य स्थित रहते हैं, एवं दूसरी ध्वनियाँ (वर्ण) इलेक्ट्रोन औं - राजवश्य की तरह कण्ठ, तालु, मूर्द्धा आदि विशेष कक्षों
अः - मृत्युनाशकारी में चक्कर लगाते रहते हैं।
कं कः- विष बीज जब नाभि टूटती है तो न्यूट्रोन और खं खः- स्तम्भन प्रोटोन आगे बढ़कर शक्ति के स्रोत बनते जाते गं गः – गणपति (ऋद्धिदाता) है । वैसे ही अनुस्वार एवं विसर्ग नाभि से अलग | घं घः - स्तम्भन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org