Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 45
________________ ३८ ] तत्त्वज्ञान स्मारिका दिका ध्वंस रहता है या प्रागभाव रहता है वहाँ । ज्ञान की अवस्था में भी होता है । उस समय अत्यन्ताभाव नहीं रहता है। भी जडत्वप्राप्ति होगी। ___मुक्तिकाल में अशेष विशेष गुणों का ध्वंस अतः ज्ञानात्यन्ताभाव को जडत्व कहना होने से वहाँ उनका अत्यन्ताभाव नहीं रहेगा। समीचीन है। अतः आत्मा को जडता का आरोप खंडित यद्यपि नव्य नैव्यायिक उपर्युक्त नियम को हो जाता है। स्वीकार नहीं करते हैं । उनके मत में भी प्रतिज्ञान के ध्वंस या प्राणभाव को जडत्व योगिव्यधिकरणज्ञानात्यन्ताभाव को जडत्व माना नहीं कहा जा सकता है। जाता है और वह जडत्व मुक्तिकरण में आत्मा में न होने से श्री हर्ष का उपर्युक्त कथन क्योंकि शिक्षणावस्थायी ज्ञान का धंस | उपेक्षणीय है ! - - - म.... न....नी....य....सू....त्र.... * विचारों की शक्ति पर भरोसा रख कर मानव अपना विकास कर सकता है । किंतु आचारमें परिणत न होनेवाले विचार कारी बन लेनार हैं अतः आराधककी पवित्र फरज है कि विचारों में आचारशक्तिका मिश्रण करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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