Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ ५६ ] (ख) युग्म - प्रदेशप्रतर - चतुरस्रः - चारआकाश प्रदेशों को घेरे हुए चार परमाणुओं से यह संस्थान बनता है । तत्त्वज्ञान स्मारिका सीधी दो पंक्तियों में दो दो अणु विद्यमान होने पर युग्मप्रदेश प्रतरचतुरस्र बनता है । (१७) ( ग ) ओज : - प्रदेश - घनचतुरस्रः- सत्ताइस आकाश प्रदेशों को अवगाहित करनेवाले सत्ताइस परमाणुओं से ओजः - प्रदेश - घन - चतुरस्र बनता है । ओजः - प्रदेश – प्रतर - चतुरस्र संस्थान के नौ परमाणुओं के ऊपर और नीचे नौ नौ परमाणुओं के विद्यमान होने पर उक्त संस्थान बनता है । (१८) (घ) युग्म - प्रदेश - घन - चतुरस्रः - आठ आकाशप्रदेशों को अवगाहित करते हुए आठ परमाणुओं का उक्त संस्थान बनता है । युग्मप्रदेश - प्रतर - चतुरस्र विद्यमान होने से युग्मप्रदेश-६ - घन - चतुरस्र बनता है । (१९) ५ - ( क ) ओजः - प्रदेश - श्रेणी - आयत-सीधी पंक्ति में तीन आकाश प्रदेशों को घेरे हुए तीन परमाणुओं का ओजः प्रदेश श्रेणी आयत संस्थान बनता है । (२०) (ख) युग्म - प्रदेश - श्रेणी आयतः - दो आकाश प्रदेशो युग्मप्रदेशों को घेरे अवगाहित करते हुए सीधी पंक्ति में विद्यमान दो परमाणुओं से यह संस्थान बनता है ! (२१) ( ग ) ओज : - प्रदेश - प्रतर - आयतः - पन्द्रह आकाश प्रदेशों को अवगाहित करते हुए तीन Jain Education International पंक्तियों में पांच पांच अणुओं के विद्यमान रहने से यह संस्थान बनता है । (२२) (घ) युग्म - प्रदेश - प्रतर - आयत-छः आकाश प्रदेशों को घेरे हुए दो पंक्तियों में तीन तीन परमाणुओं के विद्यमान होने से यह संस्थान बनती है । (२३) (ङ) ओजः - प्रदेश - घन - आयत - पैंतालीस आकाश प्रदेशों को अवगाहित किये हुए पैंत्तालीस अणुओं से यह संस्थान बनता है 1 ओजः - प्रदेश - प्रतर- आयत-संस्थान के ही पन्द्रह परमाणुओं के ऊपर और नीचे पन्द्रह ही परमाणुओं के विद्यमान होने से युग्म- प्रदेश - प्रतर- आयत बनता है । (२४) (च) युग्म - प्रदेश - घन - आयत - बारह आकाशप्रदेशों को अवगाहित करते हुए बारह परमाणुओं से युग्म - प्रदेश - घन - आयत बनता है । युग्म - प्रदेश - प्रतरायत के छह परमाणुओं के ऊपर ही छह और परमाणुओं के विद्यमान होने पर युग्म - प्रदेश - घन- आयत है । (२५) बनता लेखका आधारभूत संदर्भ ग्रंथ श्री द्रव्यलोक प्रकाश - ग्यारहवें सर्ग से १ पुद्गलानां दशविधः परिणामोऽथ कथ्यते । बन्धनाख्यो गतिनाम संस्थानाख्यः तथा परः ॥२२॥ मेदाख्यः परिणामः स्याद, वर्ण- गन्ध - रसाभिधाः । स्पर्शोऽगुरुलघुः शब्द- परिणामादशेष्यमीत ॥ २३॥ २ परिमण्डलं च वृत्तं त्र्यस्त्रं च चतुरस्रकम् । आयतं च रूपजीव संस्थानं पञ्चधा मतम् ॥ ४८ ॥ " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144