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(ख) युग्म - प्रदेशप्रतर - चतुरस्रः - चारआकाश प्रदेशों को घेरे हुए चार परमाणुओं से यह संस्थान बनता है ।
तत्त्वज्ञान स्मारिका
सीधी दो पंक्तियों में दो दो अणु विद्यमान होने पर युग्मप्रदेश प्रतरचतुरस्र बनता है । (१७)
( ग ) ओज : - प्रदेश - घनचतुरस्रः- सत्ताइस आकाश प्रदेशों को अवगाहित करनेवाले सत्ताइस परमाणुओं से ओजः - प्रदेश - घन - चतुरस्र बनता है ।
ओजः - प्रदेश – प्रतर - चतुरस्र संस्थान के नौ परमाणुओं के ऊपर और नीचे नौ नौ परमाणुओं के विद्यमान होने पर उक्त संस्थान बनता है । (१८)
(घ) युग्म - प्रदेश - घन - चतुरस्रः - आठ आकाशप्रदेशों को अवगाहित करते हुए आठ परमाणुओं का उक्त संस्थान बनता है ।
युग्मप्रदेश - प्रतर - चतुरस्र विद्यमान होने से युग्मप्रदेश-६ - घन - चतुरस्र बनता है । (१९)
५ - ( क ) ओजः - प्रदेश - श्रेणी - आयत-सीधी पंक्ति में तीन आकाश प्रदेशों को घेरे हुए तीन परमाणुओं का ओजः प्रदेश श्रेणी आयत संस्थान बनता है । (२०)
(ख) युग्म - प्रदेश - श्रेणी आयतः - दो आकाश प्रदेशो युग्मप्रदेशों को घेरे अवगाहित करते हुए सीधी पंक्ति में विद्यमान दो परमाणुओं से यह संस्थान बनता है ! (२१)
( ग ) ओज : - प्रदेश - प्रतर - आयतः - पन्द्रह आकाश प्रदेशों को अवगाहित करते हुए तीन
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पंक्तियों में पांच पांच अणुओं के विद्यमान रहने से यह संस्थान बनता है । (२२)
(घ) युग्म - प्रदेश - प्रतर - आयत-छः आकाश प्रदेशों को घेरे हुए दो पंक्तियों में तीन तीन परमाणुओं के विद्यमान होने से यह संस्थान बनती है । (२३)
(ङ) ओजः - प्रदेश - घन - आयत - पैंतालीस आकाश प्रदेशों को अवगाहित किये हुए पैंत्तालीस अणुओं से यह संस्थान बनता है
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ओजः - प्रदेश - प्रतर- आयत-संस्थान के ही पन्द्रह परमाणुओं के ऊपर और नीचे पन्द्रह ही परमाणुओं के विद्यमान होने से युग्म- प्रदेश - प्रतर- आयत बनता है । (२४)
(च) युग्म - प्रदेश - घन - आयत - बारह आकाशप्रदेशों को अवगाहित करते हुए बारह परमाणुओं से युग्म - प्रदेश - घन - आयत बनता है ।
युग्म - प्रदेश - प्रतरायत के छह परमाणुओं के ऊपर ही छह और परमाणुओं के विद्यमान होने पर युग्म - प्रदेश - घन- आयत है । (२५)
बनता
लेखका आधारभूत संदर्भ ग्रंथ श्री द्रव्यलोक प्रकाश - ग्यारहवें सर्ग से १ पुद्गलानां दशविधः परिणामोऽथ कथ्यते । बन्धनाख्यो गतिनाम संस्थानाख्यः तथा परः ॥२२॥ मेदाख्यः परिणामः स्याद, वर्ण- गन्ध - रसाभिधाः । स्पर्शोऽगुरुलघुः शब्द- परिणामादशेष्यमीत ॥ २३॥ २ परिमण्डलं च वृत्तं त्र्यस्त्रं च चतुरस्रकम् । आयतं च रूपजीव संस्थानं पञ्चधा मतम् ॥ ४८ ॥
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