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________________ चार आकाश प्रदेशों में रुचक - आकार (चूड़ी के सदृश ) से परमाणु रखे जाँय । वे रुचकाकार में दो दो परमाणु प्रत्येक दिशा में रखे जाय तो यह संस्थान बन जाता है । (९) (ग) ओजः - प्रदेश - घन - वृत्त सात श-प्रदेशों को अवगाहित किये हुए सात अणुओं के पुञ्ज को ओजःप्रदेशघनवृत्त कहते हैं । आकाश परमाणु - पुद्गल संस्थान अर्थात् ओजः - प्रदेश - प्रतरवृत्त के पांच अणुओं के मध्य भागवाले अणु के ऊपर और नीचे एक एक अणु रखने से यह संस्थान बनता है । (१०) (घ) युग्म - प्रदेश - घनवृत्त- बत्तीस आकाश प्रदेशों को घेरे हुए बत्तीस परमाणुओं का पुञ्ज युग्मप्रदेश घनवृत्त कहलाता है । युग्मप्रदेश - प्रतरवृत्त के बारह अणुओं के ऊपर ही बारह और अणुओं को रखकर चौ अणु हो जाते हैं । उनके मध्य भाग में चार ऊपर और चार नीचे रखने से बत्तीस अणुओं का यह संस्थान बनता है । (११) ३– (क) ओजः - प्रदेशप्रतर - त्र्यत्र - तीन आकाश प्रदेशों को अवगाहित किये हुए तीन परमाणु - पुद्गलों से यह संस्थान बनता है । दो परमाणुओं को एक पंक्ति में रखा जाय और एक परमाणु नीचे की ओर रखा जाय तो ओजः-प्रदेश-प्रतर–त्र्यत्र कहलाता है । (१२) (ख) युग्मप्रदेशप्रतर- त्र्यत्र -छह आकाश प्रदेशों को अवगाहित किये हुए छह अणुओं वाला संस्थान युग्म-प्रदेशप्रतरत्र्यत्र कहलाता है । Jain Education International [ ५५ एक पंक्ति में तीन अणु रखे जाँय और के बीच में एक ऊपर और एक नीचे की ओर रखा जाय तो यह संस्थान बन जाता है । (१३) ( ग ) ओजः - प्रदेशघनत्र्यत्र -- पैंत्तीस - प्रदेशों को अवगाहित किये हुए • पैंत्तीस आकाश परमाणुओं का उक्त संस्थान बनता है । पांच परमाणुओं को टेढी पंक्ति में रखा जाय । दूसरी पंक्ति में उसी प्रकार चार परमाणुओं को रखा जाय उसके ऊपर फिर दो और फिर अन्त में एक परमाणु रखा जाय तो पन्द्रह पर - माओं की संख्या बन जाती है । उसके बाद, नीचे से लेकर ऊपर की पंक्ति तक आखिरी आखिरी परमाणु को छोड़कर नीचे से ही ऊपर की ओर क्रमशः दस, छह, तीन और एक परमाणु स्थापित किये जाने से ओजः प्रदेश - घनत्र्यत्र संस्थान कहलाता है । (१४) (घ) युग्म - प्रदेश - घनत्र्यस्न- चार आकाश प्रदेशों को अवगाहित करनेवाले चार परमाणुओं का उक्त संस्थान बनता है । ओजः - प्रदेश - प्रतर- त्र्यत्र के तीन अणुओं में से किसी एक के ऊपर एक और परमाणु रखने से यह संस्थान बनता है । (१५) ४ - (क) ओजः -- प्रदेश - प्रतर - चतुरस्र - - नौ आकाश प्रदेशों को अवगाहित करते हुए नौ परमाणुओं से यह संस्थान बनता है । (१६) तीने टेढो पंक्तियों में तीन तीन परमाणुओं को रखे जाने पर ओजः - प्रदेश - प्रतर - चतुरस्र बनता है । (१६) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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