Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 141
________________ १३४] तत्त्वज्ञान-स्मारिका क्षेत्र के अन्तर्गत आर्य-क्षेत्र के मध्य की भूमि पर प्रकाश पड़ सकता है । तथा वे स्थान ऐसी बहुत उँची हो गई है, जिससे एक ओर का | जगह पर हैं कि जहाँ पर दोनों सूर्यों का प्रकाश सूर्य दूसरी ओर दिखाई नहीं देता । वह ऊँचाई | पड़ सकता है तथा दक्षिणायन के समय सतत् की आड़ में आ जाता है । और इसलिए उधर | अन्धकार रहता है। जानेवाले चन्द्रमा की किरणें वहां पर पड़ती जैन दृष्टि के अनुसार (समस्त) पृथ्वी चिपटी हैं । ऐसा होने से एक ही भरत-क्षेत्र में रात-- है । पृथ्वी के आकार के बारे में विज्ञान का मत दिन का अन्तर पड़ जाता है । इस आर्य-क्षेत्र | अभी स्थिर नहीं है । पृथ्वी को कोई नारंगी की के मध्य भाग के ऊँचे होने से ही पृथ्वी गोल भांति गोलाकार, कोई लौकी के आकार वाली' जान पड़ती है । उस पर चारों ओर उपसमुद्र और कोई पृथिव्याकार मानते है । का पानी फैला हुआ है और बीच में द्वीप पड़ गए हैं । इसलिए चाहे जिधर से जाने में भी विलियम एडगल ने इसे चिपटा माना है। जहाँज नियत स्थान पर पहुँच जाते हैं। | वे कहते हैं कि 'सभी मानते हैं कि पृथ्वी गोल सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही लगभग जम्बू है, किन्तु रूम की केन्द्रिय--फोटोग्राफी संख्या द्वीप के किनारे-किनारे मेरु-पर्वत की प्रदक्षिणा के प्रमुख प्रोफेसर 'इसा कोम' ने अपनी राय देते हुए घूमते हैं और छह-छह महिने तक में जाहिर किया है किउत्तरायण-दक्षिणायन होते रहते है। "भू-मध्यरेखा एक वृत्त नहीं किन्तु तीन इस आर्य-क्षेत्र की ऊँचाई में भी कोई- धुरियों की एक 'इलिप्स' है।" कोई मीलों लम्बे-चौड़े स्थान बहुत नीचे रह गए "पृथ्वी चिपटी है इसे प्रमाणित करने के हैं कि जब सूर्य उत्तरायण होता है तभी उन | लिए-कितनेक मनुष्यों ने वर्ष बिता दिये, किन्तु १-पृथ्वी के गोलाकार होनेके संबंध में यह दलील अक्सर दी जाती हैं कि कोई आदमी पृथ्वीके किसी भी बिन्दुसे रवाना हो और सीधा चलता जाए तो वह पृथ्वी की भी परिक्रमा करता हुआ फिर उसी स्थान "बिन्दु” पर पहुंच जाएगा । परन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि पृथ्वी का धरातल नारंगी की तरह गोल अर्थात् वृत्ताकार है । इससे सिर्फ इतना ही साबित होता है कि यह चिपटी न होकर वर्तुलाकार है । अगर पृथ्वी को लौकी की शक्ल की मान लें तो भी यह सम्भव है कि एक निश्चित बिन्दुसे यात्रा आरम्भ करके सीधा चलता हुआ व्यक्ति फिर निश्चित बिन्दु पर ही लौट आए । विश्व० भा०-लेखक श्रीरमाकान्त-पृष्ठ १६० २-कुछ विद्वानों की गवेषणा तथा खोजके परिणामस्वरूप पृथ्वी का एक नवीन ही आकार माना गया है जो न पूर्णतया गोल है और न अण्डाकार । इस आकार को 'पृथिव्याकार' कहें तो ठीक है, क्योंकि उसका अपना निराला ही आकार है । इस आकार की कल्पना इस कारण की गई है कि पृथ्वी का कोई भी अक्षांश-यहां तक कि विषुवृत्त रेखा भी-पूर्णवृत्त नहीं हैं । ३-क्या भू गोल है ? The Sunday-News of India 2nd May, 1954. ___ -विश्व० लेखक रामनारायण B.A. पृ० ३५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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