Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 111
________________ १०४ तत्त्वज्ञान-स्मारिका .. बनी है. सद्गुरु की ठकुराई । गुजरात की प्राचीन राजधानी और सार. श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरुवंदो जो कुछ हो चतुराई ॥१॥ स्वत नगरी पाटन भी इस राष्ट्रीय-सेवा से सकल सनूर हुकम सब मानति तै जिन्ह कु फुरमाई । वंचित कैसे रह सकती है ? अरू कछु दोष नहीं दल अंतरि, सारस्वत-नगर पाटन अपने पुरातन काल तिमि सब ही मनि लाई ॥२॥ से ही धर्म साहित्य के प्रमुख केन्द्र के रूप में माणिकसूरि पाट महिमावरी लई जिन स्युं वितणाइ ।। विशेष गौरवान्वित रहा है। झिगमिग ज्योति सद्गुरु की जागी, प्राचीन समय में पाटन और धोलका गुज' 'साधुकीरति' सुखदाइ ॥३॥' | रात के महान विद्याधाम थे। गुजराती के आदि-भक्तियुग के समर्थ यहाँ सहस्रलिंग-तालाब के किनारे एक भक्त कवि नरसिंह मेहता की भक्तिमय विशाल बहुत बडा विद्यानगर था । पद रचना में कहीं कहीं व्रजभाषा के पद भी प्राचीन और मध्यकालीन भारत में जिन मिल जाते हैं : जिन विद्याओं का विकास हुआ था, उन सबकी साखो-कुंजभवन खोजती प्रीत रे, यहाँ पूर्ण शिक्षा दी जाती थी। खोजत मदन गोपाल । इस समय पाटन में संस्कृत, प्राकृत, राजप्राणनाथ पावे नहीं तातें | स्थानी, गुजराती तथा व्रजभाषा में भी विपुल 3 व्याकुल भई वृजबाल ॥१॥ | साहित्य सर्जना हुई। इनके अतिरिक्त भालण, भक्तकवि कृष्ण यह साहित्य सर्जना पाटन की अमूल्य दास, प्रभास पाटन के कवि केशव, अहमदाबाद | निधि है, जो आज विस्मृत होती चली जा के परमभक्त कवि दादूदयाल, दलपतिराम, | रही है। बंशीधर, अखाभगत, शामल भट्ट, पटेल देणीदास, केवलराम नागर, आदितराम, ज्ञानीभक्त प्रीतम पाटन के भण्डारों की अलभ्य ग्रंथ-रत्न दास, किशनदास, त्रीकमदास वैष्णव, स्वामि- राशि जो कुल मिलाकर तीस हजार हस्त प्रतियों नारायणी भक्त कवि प्रेमानंद-प्रेमसखी और । के रूप में सुरक्षित है, वह आज इसी पाटन के ब्रह्मानन्द, दयाराम, गौरीबाई, कवीश्वर दल. | अतीत गौरव की मूक साक्षी बनी हुई है। पतराम आदि गुजराती भाषा के समर्थ कवियोंने पाटन को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर हिन्दी में भी काव्य रचना कर हिन्दी भाषा की भी पाटन के साहित्य और स्थापत्य में इसके भी महत्वपूर्ण सेवा की है। . अनेक रूप बिखरे नजर आते हैं। १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ९७. २. रास सहस्रपदी, पद ११९. ३. राजस्थानी भाषा और साहित्य, मोतीलाल मेनारिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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