Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 131
________________ १२४ ] - स्मारिका तत्वज्ञान दक्षिणी अमेरिका में सनातन हिमश्रेणियों की 00 ऊँचाई १६ फुट है, और जैसे हम उत्तर की ओर बढते हैं, यह ऊँचाई क्रमशः कम होती जाती हैं; यहां तक कि अलास्का पहुँचने पर वह केवल २००० फुट ही रह जाती है। अधिक उत्तर की ओर जाने पर यहां ऊँचाई समुद्र तल से केवल ४०० फुट नापी गई है । (३) पृथ्वी गोल होती तो उत्तरी ध्रुवके समीप जैसी वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं, वैसे ही दक्षिणी ध्रुवमें भी होती । " बास्तवमें उतरी - ध्रुवके इर्दगीर्द २०० मीलके भीतर कई प्रकारकी वनस्पतियां पाई गई हैं।" ग्रीनलैंड, आइसलैंड, साइबेरिया आदि शीत कटिबंध के निकटस्थ प्रदेशमें आलू, मटर, जौ, तथा चनेकी फसलें तैयार होती हैं। इसके विपरीत दक्षिण में ७० अक्षांश पर ओरकेनी शेट्लैंड आदि टापुओं पर एक भी जीव नहीं पाया जाता । (४) यदि पृथ्वी गोल होती तो उत्तर में जिस अक्षांश पर जितने समय तक उषःकाल रहता है; उतने ही अक्षांश पर दक्षिणमें भी उतनी ही देर उषःकाल रहता । किंतु वास्तवमें ऐसा नहीं है । Jain Education International उत्तर में ४० अक्षांश पर ६० मिनट तक पका रहता है और सालके उसी समय भूमध्यरेखा पर केवल १५ मिनट और दक्षिणमें ४० अक्षांश पर तो केवल ५ ही मिनट । मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया आदि प्रदेश उसी अक्षांश पर हैं, जिन पर उत्तर में फिलाडेल्फिया है । यहां एक पादरी फादर जोन्सटनने इन दक्षिण- अक्षांशों को यात्रा के सिलसिले में लिखा है कि "यहां उषःकाल और सन्ध्याकाल केवल ५ या ६ मिनट के लिये होते हैं । जब सूर्य क्षितिके ऊपर ही रहता है, तभी हम रातका सारा प्रबन्ध कर लेते हैं। क्योंकि जैसे ही सूर्य डूबता है, तुरन्त रात हो जाती है । " इस कथन से सिद्ध हैं कि यदि पृथ्वी गोल होती तो भूमध्य रेखाके उत्तरी- दक्षिणी भागों में उषःकाल अवश्य समान होता । में केप्टन फ्रॉशियर के साथ यात्रा करते हुए (५) केप्टन जे० रास सन् १८३८ ई० जितनी अधिक दक्षिणकी ओर आटलांटिक (ऐंटार्कटिक ) सरकिल तक जा सके गये । वहां उनके वर्णनसे ज्ञात होता है कि उन्होंने पहाड़ोकी ऊँचाई १०,००० से लेकर १३,००० तक नापी और ४५ फुटसे लेकर १,००० फुट तक ऊँची एक पक्की बर्फीली दीवार खोज निकाली । इस दीवारका ऊपरी भाग चौरस था और उस पर किसी प्रकार की दरार या गड्ढा न था । उस पर चार वर्ष तक ४०,००० मीलकी यात्रा हुई । किन्तु दीवारका कहीं अन्त न हुआ । यदि पृथ्वी गोल होती, तो इसी अक्षांश पर पृथ्वी की परिधि केवल १०, ८०० मील होती, अर्थात् ४०,००० मीलके बजाय केवल १०,८०० मीलकी यात्रा पर्याप्त होती । (६) यदि उपर्युक्त सिद्धांत ठीक है भूमध्यरेखा निश्चय ही भूकी मध्यरेखा ही है; क्योंकि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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