Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 121
________________ ११५] तत्वज्ञान-स्मारिका शैली में हुआ है । मेनका रम्भा को पूछती है : | ऐसी भयंकर पीडा होने लगी।" यह दृश्य "कौन भेद है, क्या अन्तर है धरती और गगनमें, | मृत्युलोक का है। उठता है यह प्रश्न कभी रम्भे ! तेरे भी मनमे।" देवरूप में जन्म-अचानक मेरी सारी अप्सरा रम्भा उत्तर देतो है : | वेदना दूर हो गई । मैं एक सुन्दर उद्यान में "अमिट, स्निग्ध निधूम धने पेड़ की छाया में सोई हुई थी। मैंने आँखें . शिखा सी देवों की काया है। खोली । मेरी दृष्टि मेरे शरीर पर पड़ी। मेरा मर्त्यलोक की सुन्दरता तो शरीर हल्का, तेजस्वी और सुन्दर था। दूर से क्षण भर की माया है ।" एक मनुष्य मेरी ओर आ रहा था। चांदनी यह वर्णन भी देवलोक का सही चित्र जैसे सफेद वस्त्र उसने पहने थे । प्रस्तुत करता है। ___ 'चलो, उठो, मैं तुमको सब बताउँ ।' मेरे ___ इस तरह आधुनिक विज्ञान, शास्त्र एवं समीप आकर उसने कहा । हम लोग चलने साहित्य देवलोक के विषय में एकमत है। लगे। सामने से सुन्दर स्त्री-पुरुषों का एक देवलोक में उत्पन्न होते ही वयस्क युवा । समूह आ रहा था । उनमें से कुछ के हाथों शरीर की प्राप्ति होती है। में वाद्ययंत्र थे । कुछ गा रहे थे; कुछ लोगों के इसका एक दृष्टान्त अमेरिका में जन्मे | हाथों में अत्यन्त सुगंधित फूलोंवाली डालियों थीं। परामनोविज्ञान के प्रोफेसर श्री अरविंद जानी ने 'ये सब कौन हैं ?' मैंने इस व्यक्ति से दिया है। पूछा। श्री सुरेश दलाल ने 'संदेश' गुजराती पत्र ' यक्ष, किन्नर, गन्धर्व ।' में ता. २ नवम्बर १९६९ के अंक में इसे । 'कहाँ जाते ?' प्रस्तुत किया था । दृष्टान्त इस प्रकार है : 'आनन्द-यात्रा पर ।' "एक महिला ने बताया : "मुझे इस समय 'मैं उनके साथ जा सकती हूं?' मेरी मृत्यु की सुबह याद आती है। दस बजे 'हाँ ।' थे । मेरे माता-पिता-सारा कुटुम्ब मेरे बिस्तर __मैं उनके साथ साथ आनन्द-यात्रा में के चारों और था । मेरी छाती में असह्य वेदना | सम्मिलित हुई। सम्मिलित होते ही मैं पृथ्वी पर थी। लाख-लाख बिच्छू एक साथ काटते हों, की सब चीजें भूल गई।" ४. 'उर्वशी' महाकाव्य के रचयिता राष्ट्रकवि रामधारीसिंह 'दिनकर' हैं । इस काव्यकृति पर महाकवि को एक लाख रुपयों का पुरस्कार 'ज्ञानपीठ' द्वारा प्राप्त हुआ है । ५. 'विज्ञान और अध्यात्म' : चौथा : अध्याय आधुनिक खगोल और परामनोविज्ञान द्वारा निर्दिष्ट "परलोक की झांकी' पृष्ठ-५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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