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सप्तभंगी : स्वरूप और दर्शन
[७३ नय-सप्तभंगी
। इसलिए काल की दृष्टि से वस्तुगत धर्मों में भेद नय वस्तु के किसी एक धर्म को मुख्य रूप । है, अभेद नहीं ।। से ग्रहण करता है किन्तु शेष धर्मों का निषेध (२) आत्मरूप-वस्तुगत गुणों का आत्मन कर उनके प्रति तटस्थ रहता हैं। इसी को रूप भी पृथक् पृथक् है । यदि अनेक गुणों का "सुनय" कहते हैं। नय-सप्तभंगी सुनय में होती आत्मरूप अलग न माना जाय, तो गुणों में भेद है, दुर्नय में नहीं । वस्तु के अनन्त धर्मों में से को बुद्धि किस प्रकार होगी ? जब गुण अनेक किसो धर्म का काल आदि भेदावच्छेदकों द्वारा हैं तो उनका आत्मरूप भी भिन्न-भिन्न ही भेद की प्रधानता या भेद के उपचार से प्रति- होना चाहिये, क्योंकि एक आत्मरूपवाले अनेक पादिन करनेवाला वाक्य विकलादेश कहलाता नहीं, एक ही होंगे । अतः आत्मरूप से भी गुणों है । इसे नय-सप्तभंगी कहते हैं । भेद--दृष्टि से ।
। में भेद ही सिद्ध होता है। नय-सप्तभंगी में वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादन
(३) अर्थ-विविध धर्मो' का अपना अपना किया जाता है।
आश्रय अर्थ भी विविध ही होता है। यदि काल आदि की दृष्टि से
विविध गुणों का आधारभूत पदार्थ अनेक न हो
तो एक को ही अनेक गुणों का आश्रय मानना नय-सप्तभंगी में गुण-पिण्डरूप द्रव्य-पदार्थ
होगा, जो युक्तियुक्त नहीं है। एक का आधार को गौण और पर्याय-स्वरूप अर्थ को प्रधान
एक ही होता है । इसलिए अर्थभेद से भी सब माना जाता है, इसलिए नय-सप्तभंगी भेद--प्रधान
| धर्मों में भेद है। है । जैसे प्रमाण सप्तभंगी में काल आदि के
(४) सम्बन्ध-सम्बन्धियों के भेद से संबंध आधार पर एक गुण को अन्य गुणों से अभिन्न
में भी भेद होना स्वाभाविक है । यह संभव नहीं विवक्षित किया जाता है, वैसे ही नय-सप्तभंगी
कि संबंधी तो अनेक हों और उन सबका में उन्हीं काल आदि आधारों से एक गुण का
सम्बन्ध एक हो । गुरुदत्त का अपने पुत्र से जो दूसरे गुण से भेद विवक्षित किया जाता है । वह
सम्बन्ध है, वही भाई, माता, पिता के साथ इस प्रकार है---
नहीं है। इसलिए भिन्न धर्मों में सम्बन्ध की (१) काल-वस्तुगत गुण प्रतिपल-प्रतिक्षण | अपेक्षा से भेद ही सिद्ध होता है, अभेद नहीं। विभिन्न रूपों में परिणत होता रहता है । इस- (५) उपकार-उपकारक के भेद से उपकार लिए जो अस्तित्व का काल है वह नास्तित्व में भेद होता है। अतः अनेक धर्मों के द्वारा
आदि का काल नहीं है । विभिन्न-धर्मों का होनेवाला वस्तु का उपकार भी वस्तु में पृथक्विभिन्न काल होता है, एक नहीं । यदि सभी पृथक् होने से अनेक रूप है, एक रूप नहीं । गुणों का एक ही काल माना जायेगा तो सभी । इसलिए उपकार की अपेक्षा से भी अनेक गुणों पदार्थों का भी एक ही काल कहा जा सकेगा। में अभेद धदित नहीं होता।
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