Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 95
________________ ८८ ] तत्त्वज्ञान-स्मारिका अधः उर्ध्व सिद्ध लोक १२ ज्योतिर्लोक और इसमें ९०० गाथाओं द्वारा कर्मभूमि, भोग१३ प्रमाण परिच्छेद । | भूमि, आये-अनार्य देश, राजधानियां, तीर्थंकरों श्वेताम्बर परम्परा में इस विषयक आग- | के पूर्वमत, माता-पिता, स्वप्न, जन्म आदि एवं मान्तर्गत सूर्य, चन्द्र व जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तियों के | समवसरण, गणधर, अष्टमहाप्रातिहार्य, कल्कि, अतिरिक्त क्षेत्रसमास एवं संग्रहणी उल्लेखनीय है। शक व विक्रम काल गणना दश निन्हव, ८४ इन दोनों ही रचनाओं के परिमाण में क्रमशः | लाख योनियों व सिद्ध इस प्रकार नाना विषयों बहुत परिवर्द्धन हुआ है और उनके लघु और | का वर्णन है । इस ग्रंथ पर आ. माणिक्य सागर बृहद् रूप संस्करण टीकाकारों ने प्रस्तुत की है। | सूरि कृत संस्कृत छाया उपलब्ध है। बृहत्क्षेत्रसमास लोकविन्दु क्षेत्रसमास वृत्ति ___ इसमें ६५६ गाथाएँ हैं जो पांच अधि- इसके रचयिता आ. हरिभद्रसूरि हैं और कारों में इस प्रकार विभक्त है। १ जम्बूद्वीप | समय ८वीं शताब्दी है। २ लवणोदधि ३ धातकीखण्ड ४ कालोदधि और | क्षेत्रसमास वृत्ति ५ पुष्कराई । बृहत् संग्रहणी जिसका दूसरा नाम त्रैलो पूर्व में इन नाम के ग्रंथ का उल्लेख किया क्य दीपिका है। चुका है । प्रस्तुत ग्रंथ उससे भिन्न लेखक विजयइसके संकलनकर्ता मलधारी आ. हेमचन्द्र सिंह द्वारा लिखित है। सूरि के शिष्य आ. चन्द्रसूरि है । जिनका समय | जो कि १४वीं शताब्दी में पाली (राज१२वीं शताब्दी है। स्थान ) में लिखा गया था । ____ इस ग्रंथ में ३ ४९ गाथाएं हैं। इसमें लोकों चन्द्रविजय प्रबन्ध की अपेक्षा उनमें रहने वाले जीवों का ही अधिक ग्रंथ के रचयिता का नाम मंडन है । जो विस्तार से वर्णन किया गया है। | कि मालवा के सुलतान होशंग गोरीका प्रधानलघुक्षेत्रसमास मंत्री था । इसके रचयिता आ. रत्नशेखरसूरि हैं। जिनका समय १४वीं शताब्दी है। इसमें कुल इसी कारण लेखक मंत्री मंडन के नाम से ४८९ गाथाएं हैं । इनमें अढ़ाई द्वीप प्रमाण प्रख्यात है। मनुष्य लोक का वर्णन है। इस ग्रंथ की रचना तिथि सं. १५०४ है। विचारसार प्रकरण इस ग्रंथ में चन्द्रमा की कलाएँ, सूर्य के साथ .. रचनाकार आ. देवसूरि के शिष्य आ. | चन्द्रमा का युद्ध और अन्त में चन्द्रमा की विजय प्रद्युम्नसूरि हैं । समय. १३वीं शताब्दी है। | आदि का वर्णन दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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