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तत्त्वज्ञान स्मारिका क्षेत्र की अपेक्षा से हो धर्म और अधर्म को | । जैन अस्तिकाय की अवधारणा में प्रचय असंख्य प्रदेशी और आकाश को अनन्त-प्रदेशी | या विस्तार को जिस अर्थ में ग्रहण किया जाता कहा गया है, अतः उनमें उपचार से कायत्व की । हैं, वह बहुआयामी विस्तार है न कि ऊर्ध्व एकअवधारणा की जा सकती है।
रेखीय विस्तार । ... पुद्गल का जो बहुप्रदेशीपना है, वह पर- जैन दार्शनिकों ने केवल इन्हीं द्रव्यों को 'माणु की अपेक्षा से न होकर स्कन्ध की अपेक्षा अस्तिकाय कहा है, जिनका तिर्यक्-प्रचय या से है, इसीलिए पुद्गल को अस्तिकाय कहा गया बहुआयामी विस्तार है, काल में केवल ऊर्ध्व है, न कि परमाणु को।
प्रचय या एकआयामी विस्तार है, अतः उसे ... परमाणु तो स्वयं पुद्गल का एक अंश या | . प्रकार मात्र है।
यद्यपि प्रो. जी. आर. जैन ने काल को वस्तुतः इस प्रसंग में कायत्व का अर्थ एकआयामी ( Mono dimensional ) और विस्तारयुक्त होना ही है, जो द्रव्य-विस्ताररहित हैं। शेष को द्वि-आयामी (Two dimensional) वे अनस्तिकाय हैं।
माना है। विस्तार की यह अवधारणा क्षेत्र की अव- ।
किन्तु मेरी दृष्टि में शेष द्रव्य त्रि-आयामी धारणा पर आश्रित है।
है, क्योंकि वे स्कन्ध रूप हैं, अतः उनमें लम्बाई, वस्तुतः कायत्व के अर्थ के स्पष्टीकरण में चौडाई, मोटाई तीनों ही है। सावयवत्व एवं सप्रदेशत्व को जो अवधारणायें स्कन्ध में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई के प्रस्तुत की गई हैं वे सभी क्षेत्र के अवगाहन की
रूप में तीन आयाम होते हैं । संकल्पना से संबंधित है।
___ अतः कहा जा सकता है कि जिन द्रव्यों विस्तार का तात्पर्य है क्षेत्र का अवगाहन । |
में त्रि-आयामी विस्तार हैं वे अस्तिकाय द्रव्य हैं। · जो द्रव्य जितने क्षेत्र का अवगाहन करता है वही उसका विस्तार ( Extention ), प्रदेश
यहां यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि
| काल भी लोकव्यापी है फिर उसे अस्तिकाय प्रचयत्व या कायत्व है। विस्तार या प्रचय दो प्रकार माना गया है, ऊर्ध्व प्रचय और
क्यों नहीं माना गया ? तिर्यक् प्रचय ।
इसका प्रत्युत्तर यह है कि यद्यपि लोका___ आधुनिक शब्दावली में इन्हें क्रमशः उर्ध्व | काश के प्रत्येक प्रदेश पर कालाणु स्थित हैं, एकरेखीय विस्तार ( Longitudenal Exten- | किन्तु प्रत्येक कालाणु ( Time-Grain ) अपने ion) और बहुआयामी विस्तार ( Multi | आप में एक स्वतंत्र द्रव्य है, वे परस्पर निरपेक्ष dimensional Extension) कहा जा | है, स्निग्ध एवं रुक्ष-गुण के अभाव के कारण सकता है।
| उनमें वन्ध नहीं होता है, अर्थात् उनके स्कन्ध
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