Book Title: Tattvagyan Smarika
Author(s): Devendramuni
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 40
________________ र दार्शनिक आलोक में आत्मा डॉ. बलिराम शुक्ल एम. ए., पीएच. डी., न्यायाचार्य अध्यक्ष-न्याय एवं सर्वदर्शन विभाग ___नई दिल्हो ROSSASARASHRSITISAR* दर्शन मुख्य रूप से तीन बातों का विचार । मूर्त अथवा आध्यात्मिक (Concrete or और विश्लेषण करता है। Idealistic) मत है। (१) मैं क्या हूँ? ___भारतीय-दर्शनों में चार्वाक से होकर (२) यह बाह्य संसार क्या है ? और अद्वैत-वेदान्त तक सभी दर्शनों में आध्यात्मिक (३) मुझमें और इस संसार में क्या सम्बन्ध हैं ? | तत्त्व के रूप में आत्मा के अस्तित्व और निषेध इन प्रकार के विचारों के फलस्वरूप सभी | का विस्तृत उहापोह प्राप्त होता है। भारतीय दर्शनों में "मैं" के अर्थात् आत्मा के दस प्रकार का विस्तत. सर्वाङ्गीण तर्कपूर्ण विचार का सृजन हुआ तथा मैं (आत्मा) के | (आत्मा) के विवेचन पाश्चात्य-दर्शन में प्राप्त नहीं है। विश्लेषण को प्रमुख स्थान मिला । ____ पाश्चात्य दर्शन में भी Philosophy of __अतः प्रस्तुत में भारतीय-दर्शनों के आधार the self का प्रामुख्य दृष्टिगोचर होता है। पर आत्मा (self) का विश्लेषण करना ही पाश्चात्य-दर्शन में आत्मा शब्द तीन अर्थो । उचित होगा। में प्रयुक्त होता है। चार्वाक मत : इसका पहला अर्थ है " एक अमूर्त एकता चार्वाक प्रत्यक्ष प्रमाणवादी होने से उसके अथवा तत्त्व जो अपनी अभिव्यक्ति से पृथक है ।" मत में आत्मा नामक आध्यात्मिक-तत्त्व की दूसरा अर्थ-" मानसिक-दशाओं का वह सिद्धि बाह्य भौतिक-पदार्थों के समान बाह्य समुदाय जो अपने तत्त्व से पृथक् है।" प्रत्यक्ष से या सुख-दुःख से आंतरिक-भावनाओं तथा तीसरा अर्थ है-“ एक आध्यात्मिक की तरह आभ्यन्तर प्रत्यक्ष से संभव नहीं है । तत्त्व जो अभिव्यक्ति के आधार पर प्रमाणित . आत्मा को प्रामाणिकता को अनुमान से होता है, तथा परिवर्तनों के मध्य में अपने तादा- भी प्रस्थापित करना प्रस्थापक हेतु के अभाव त्म्य को भी नहीं खोता हैं।" में अशक्य है। __पहला मत तात्त्विक मत (Nounaenal) चैतन्य--भूतपदार्थों की परिणति विशेष है, दूसरा अनुभव पर आधारित है, तथा तीसरा | का नाम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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