Book Title: Tattvagyan Pathmala 2 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 7
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates महावीराष्टक स्तोत्र सामान्यार्थ जिस प्रकार सन्मुख समागम पदार्थ दर्पण में झलकते है, उसी प्रकार जिनके केवलज्ञान में समस्त जीव-अजीव अनंत पदार्थ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सहित युगपत् प्रतिभासित होते रहते है; तथा जिस प्रकार सूर्य लौकिक मागाँ को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार मोक्षमार्ग को प्रकाशित करनेवाले जो जगत के ज्ञाता-दृष्टा हैं; वे भगवान महावीर मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दे।।१।। स्पन्द (टिमकार) और लालिमा रहित जिनके दोनों नेत्रकमल मनुष्यों को बाह्य और अभ्यंतर क्रोधादि विकारों का प्रभाव प्रगट कर रहे हैं; और जिनकी मुद्रा स्पष्ट रूप से पूर्ण शान्त और अत्यंत विमल है; वे भगवान महावीर स्वामी मेरे ( हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे ( हमें ) दर्शन दे।।२।। ___नम्रीभूत इन्द्रों के समूह के मुकुटों की मणियों के प्रभाजाल से जटिल ( मिश्रित) जिनके कान्तिमान दोनों चरणकमल, स्मरण करने मात्र से ही, शरीरधारियों की सांसारिक दुःख-ज्वालाओं का, जल के समान शमन कर देते हैं; वे भगवान महावीर स्वामी मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे ( हमें) दर्शन दे ।। ३।। जब पूजा करने के भाव मात्र से प्रसन्नचित्त मेढ़क ने क्षण भर में गुणगणों से समृद्ध सुख की निधि स्वर्गसंपदा को प्राप्त कर लिया, तब यदि उनके सद्भक्त मुक्ति-सुख को प्राप्त करलें तो कौनसा आश्चर्य हैं अर्थात् उनके सद्भक्त अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त करेंगे। वे भगवान महावीर स्वामी मेरे ( हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दे ।। ४।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
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