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सम्यग्दर्शन हैं। जिस प्रकार से रागादि मिटाने का जानना हो वही जानना सम्यग्ज्ञान हैं, तथा जिस प्रकार से रागादि मिटें वही आचरण सम्यक्चारित्र हैं। अतः प्रत्येक अनुयोग की पद्धति का यथार्थ ज्ञान कर जिनवाणी के रहस्य को समझने का यत्न करना चाहिए।
दीवान रतनचंद - शास्त्रों के अध्ययन में कहीं-कहीं परस्पर विरोध भासित हो तो क्या करें?
पं. टोडरमल - जिनवाणी में परस्पर विरोधी कथन नही होते हैं। हमें अनुयोगों की कथन पद्धति का एवं निश्चय–व्यवहार का सही ज्ञान नहीं होने सें विरोध भासित होता हैं। यदि हमें शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति का ज्ञान हो जावें तो विरोध प्रतीत नहीं होगा। अतः सदा आगम-अभ्यास का प्रयास रखना चाहिए। मोक्षमार्ग में पहला उपाय आगमज्ञान कहा हैं। अतः तुम यथार्थ बुद्धि द्वारा आगम का अभ्यास किया करो! अतः तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा!! प्रश्न -
१. व्यवहार बिना निश्चय का उपदेश क्यों नहीं हो सकता ? स्पष्ट कीजिए। २. क्या व्यवहार नय स्वयं के लिए भी प्रयोजनवान हैं ? जी हाँ, तो
कैसे ? ३. चारों अनुयोगों के व्याख्यान के विधान का वर्णन कीजिए।
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