Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 61
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates धर्मतीर्थ के प्रवर्तक, महाभाग्यशाली, भावी तीर्थंकर बालक का जन्म होगा। आज तुम्हारी कुक्षि उसी प्रकार धन्य हो गई जिस प्रकार आदि तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) के गर्भभार से मरुदेवी की हुई थी। समग्रतः ये स्वप्न बताते हैं कि तुम्हारा पुत्र पुष्पों के समान कोमल, चन्द्रसा शीतल, सूर्यसा प्रतापी, अज्ञानरूप अंधकार का नाशक, गजसा बलिष्ठ, वृषभसा कर्मठ, सागरसा गंभीर, रत्नों की राशिसा निर्मल एवं निधूम अग्निशिखासा जाज्वल्यमान होगा। आषाढ़ शुक्ला ६ के दिन बालक वर्धमान माँ के गर्भ मे पाए। बालक वर्धमान जन्म से स्वस्थ, सुंदर एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। वे दोज के चंद्र की भाँति वृद्धिंगत होते हुए अपने वर्धमान नाम को सार्थक करने लगे। उनकी कंचनवर्णी काया अपनी कांति से सब को आकर्षित करती थी। उनके रूप-सौंदर्य का पान करने के लिए सुरपति (इन्द्र) ने हजार नेत्र बनाए थे। ___ वे आत्मज्ञानी, विचारवान, विवेकी और निर्भीक बालक थे। डरना तो उन्हो में शीखा ही न था। वे साहस के पुतले थे। अतः उन्हें बचपन से ही वीर, प्रतिवीर, कहा जाने लगा था। उनके पाँच नाम प्रसिद्ध हैं - वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्धमान और महावीर। __वे प्रत्युत्पन्नमति थे और विपत्तिों में अपना संतुलन नहीं खोते थे। एक दिन अपनी बाल-सुलभ क्रीडाओं से माता-पिता, परिजनो और पुरजनो को आनंद देने वाले बालक वर्धमान अन्य राजकुमारो के साथ क्रीड़ावन मे खेल रहे थे। खेल ही खेल मे अन्य बालकों के साथ वर्धमान भी एक पेड़ पर चढ़ गये। इतने में ही एक भयंकर काला सर्प कर वृक्ष से लिपट गया और क्रोधावेश में वीरों को भी कम्पित कर देने वाली फंकार करने लगा । विषम स्थिति में अपने को पाकर अन्य बालक तो भय से कांपने लगे पर धीर-वीर बालक वर्धमान को वह भयंकर नागराज विचलित न कर सका। महावीर को अपनी ओर निर्भय और निःशंक आता देख नागराज निर्मद होकर स्वयं अपने रास्ते चलता बना। इसी प्रकार एक बार एक हाथी मदोन्मत हो गया और गजशाला के स्तम्भ को तोड़कर नगर मे विप्लव मचाने लगा। सारे नगर मे खलबली मच गई। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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