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पाठ ९
देवागम स्तोत्र
(आप्तमीमांसा) तार्किक चक्रचूड़ामणि प्राचार्य समन्तभद्र विक्रम की द्वितिय शताब्दी में महान दिग्गज प्राचार्य हो गए हैं। वे प्राद्यस्तुतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपने अनेक स्तोत्र लिखे हैं, जिनमें अनेक गंभीर न्याय भरे हुए हैं । 'देवागम स्तोत्र' भी उनमें एक अद्वितीय स्तोत्र हैं जिसे ‘प्राप्तमीमांसा' भी कहते हैं क्योंकि उसमें प्राप्त ( सच्चे देव) के स्वरूप पर गहरी विचारणा प्रस्तुत की गई हैं। प्राचार्य उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र ( मोक्षशास्त्र ) पर आचार्य समन्तभद्र ने एक 'गंधहस्ति महाभाष्य' नामक भाष्य लिखा था। यह 'देवागम स्तोत्र' तत्त्वार्थ सूत्र के मंगलाचरण
मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्म-भूभृताम् ।
। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तदगणलब्धये।। के संदर्भ मे लिया गया ‘गंधहस्ति महाभाष्य' का मंगलाचरण हैं ।
इस स्तोत्र पर अनेक गंभीरतम विस्तृत टीकाएँ संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं, जिसमें प्राचार्य अकलंकदेव की आठसौ श्लोक प्रमाण 'अष्टशती' एवं प्राचार्य विद्यानन्दि की आठ हजार श्लोक प्रमाण 'अष्टसहस्त्री' अत्यंत गंभीर व प्रसिद्ध टीकाएँ हैं। इसमें ११४ छंद हैं। सब को यहाँ देना संभव नहीं हैं। इनका अर्थ भी अत्यन्त गूढ़ हैं,उसके विशेष स्पष्टीकरण को भी यहाँ अवकाश नहीं हैं। अतः उसके प्रारंभ के १६ छन्द सामान्यार्थ के साथ नमूने के रूप में प्रस्तुत हैं। देवागम स्तोत्र व उसकी टीकाएँ मूल में पठनीय हैं। १. तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग १ में प्राचार्य समन्तभद्र का परिचय दिया गया हैं, वहाँ से
अध्ययन करना चाहिए। परीक्षा में तत्संबंधी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
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