Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 60
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ऐसी कौनसी लौकिक घटना शेष हैं जो उनके अनन्त पूर्व-भवों में उनके साथ न घटी हो ? महावीर का जन्म वैशाली गणतंत्र के प्रसिद्ध राजनेता लिच्छवि राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला के उदर से कुण्डग्राम में हुआ था। उनकी माँ वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष राजा चेटक की पुत्री थीं। वे आज से २५७१ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन नाथ (ज्ञातृ) वंशीय क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। महावीर का नाम उनके माता-पिता ने उनको वृद्धिंगत नित्य होने देख वर्धमान रखा। उनके जन्म का उत्सव उनके माता-पिता व परिजन-पुरजनों ने तो बहुत उत्साह के साथ मनाया ही था, साथ ही भावी तीर्थंकर होने से इन्द्रो और देवो ने भी आकर महान उत्सव किया था। जिसे जन्म-कल्याणक महोत्सव कहते हैं। इन्द्र ने उन्हे ऐरावत हाथी पर बैठाकर ठाठ-बाट से जन्माभिषेक किया था, जिसका विस्तृत वर्णन जैन पुराणो में उपलब्ध हैं। उनके तीर्थंकरत्व का पता तो उनके गर्भ में आने के पूर्व ही चल गया था। एक दिन रात्रि के पिछले पहर में शान्तचित्त निद्रावस्था में प्रियकारिणी माता त्रिशला ने महान शुभ के सूचक निम्नांकित सोलह स्वप्न देखे : (१) मदोन्मत्त गज. (२) ऊँचे कंधो वाला शुभ्र बैल, (३) गर्जता सिंह, (४) कमल के सिंहासन पर बैठी लक्ष्मी, (५) दो सुगंधित मालाएँ, (६) नक्षत्रों की सभा मे बैठा चंद्र, (७) ऊगता हुआ सूर्य, (८) कमल के पत्तों से ढंके दो सुवर्ण-कलश, (९) जलाशय मे क्रीड़ारत मीन-युगल (१०) स्वच्छ जल से भरपूर जलाशय, (११) गंभीर घोष करता सागर, (१२) मणि-जड़ित सिंहासन, (१३) रत्नों से प्रकाशित देव-विमान, (१४) धरणेन्द्र का गगनचुम्बी विशाल भवन , (१५) रत्नों की राशि और (१६) निधूम अग्नि ।। प्रातःकालीन क्रियाओं से निवृत्त होकर माँ त्रिशला ने राजा सिद्धार्थ को जब उक्त स्वप्न-प्रसंग सुनाया और उनका फल जानना चाहा तब निमित्तशास्त्र के वेत्ता राजा सिद्धार्थ पुलकित हो उठे। शुभ स्वप्नों का शुभतम फल उनकी वाणी से पहिले उनकी प्रफुल्ल मुखाकृति ने कह दिया। उन्होने बताया कि तुम्हारे उदर से तीन लोक के हृदयों पर शासन करने वाले ५८ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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