________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
साथ पशुओं के बैठने की भी व्यवस्था थी और बहुत से पशुगण भी शान्तिपूर्वक धर्मश्रवण करते थे। सर्वप्राणी-समभाव जैसा महावीर की धर्मसभा में प्राप्त था वैसा अन्यत्र दुर्लभ हैं। उनके द्वारा स्थापित चतुर्विध संघ में मुनि-संघ और श्रावक संघ के साथ-साथ आर्यिका-संघ और श्राविका-संघ भी थे।
अनेक विरोधी विद्वान भी उनके उपदेशों से प्रभावित होकर अपनी परंपरायो को त्याग कर उनके शिष्य बने। प्रमुख विरोधी विद्वान इन्द्रभूति गौतम तो उनके पट्टशिष्यों में से हैं। वे ही उनके प्रथम गणधर बने जो कि गौतम स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे भगवान महावीर के शिष्य कैसे बने, इसका विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता हैं :
इन्द्रभूति गौतम वेद-वेदांगो के पारंगत विद्वान थे। उनके पांच सौ शिष्य थे। इन्द्र ने जब यह अनुभव किया कि भगवान की दिव्यध्वनि को पूर्णतः धारण करने में समर्थ उनका पट्टशिष्य बनने के योग्य इन्द्रभूति गौतम ही है, तब वह वृद्ध ब्राह्मण के वेश में उनके आश्रम में पहुँचा। इन्द्र ने इन्द्रभूति के समक्ष एक छन्द प्रस्तुत किया एवं अपने को महावीर का शिष्य बताते हुए उसका अर्थ समझने की जिज्ञासा प्रगट की। वह श्लोक इस प्रकार हैं :
त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्कायलेश्याः। पंचान्ये चास्तिकाया व्रतसमितिगतिज्ञानचरित्रभेदाः।। इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभूवनमहितैः प्रोक्रमर्हदभिरीशैः।
प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यःस वै शुद्धदृष्टिः।। इन्द्रभूति विचारमग्न हो सोचने लगे-ये छह द्रव्य, नौ पदार्थ, पंचास्तिकाय आदि क्या हैं ? अपने तत्संबंधी प्रज्ञान को दर्प में दबाते हुए इन्द्रभूति ने इन्द्र से कहा-इस संबंध में मैं तुम्हारे गुरू से ही चर्चा करूगाँ। चलों! वे कहाँ हैं ? मैं उन्ही के पास चलता हूँ। इन्द्रभूति के सद्धर्म प्राप्ति का काल आ चुका था, साथ ही भगवान की दिव्य-ध्वनि खिरने का काल भी आ चुका था। समवशरण के निकट पाते ही उनके विचारो में कठोरता का स्थान कोमलता ने ले लिया। मानस्तंभ को देखते ही उनका मान गल गया और उन्होंने भगवान महावीर के पास दीक्षा ले ली। उनकी योग्यता और भगवान
६३
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com