________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
घड़ा मिट्टी से अभिन्न हैं इसलिए मिट्टी स्वयं ही कर्म हैं; अपने परिणमन स्वभाव से मिट्टी ने घड़ा बनाया, इसलिए मिट्टी स्वयं ही करण हैं; मिट्टी ने घड़ारूप कर्म अपने को ही दिया, इसलिए मिट्टी स्वयं संप्रदान हैं। मिट्टी ने अपने में से पिण्डरूप अवस्था नष्ट करके घटरूप कार्य किया और स्वयं ध्रुव बनी रही, इसलिए वह स्वयं ही अपादान हैं। मिट्टी ने अपने ही आधार से घड़ा बनाया, इसलिए स्वयं ही अधिकरण हैं। इस प्रकार निश्चय से छहों कारक एक ही द्रव्य में हैं।
परमार्थतः एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की सहायता नहीं कर सकता और द्रव्य स्वयं ही, अपने को, अपने से, अपने लिए, अपने में से, अपने में करता हैं, इसलिए निश्चय छह कारक ही परम सत्य हैं।
उपरोक्त प्रकार से द्रव्य स्वयं ही अपनी अनंतशक्ति रूप सम्पदा से परिपूर्ण हैं, इसलिए स्वयं ही छह कारक रूप होकर अपना कार्य करने के लिए समर्थ हैं, उसे बाह्य सामग्री कोई सहायता नहीं कर सकती। इसलिए केवलज्ञान प्राप्ति के इच्छुक आत्मा को बाह्य सामग्री की अपेक्षा रखकर परतंत्र होना निरर्थक हैं। शुद्धोपयोग में लीन प्रात्मा स्वयं ही छह कारकरूप होकर केवलज्ञान प्राप्त करता हैं। वह आत्मा स्वयं ही अनंतशक्तिवान ज्ञायक-स्वभाव से स्वतंत्र हैं, इसलिए स्वयं ही कर्ता हैं; स्वयं अनंतशक्तिवाले केवलज्ञान को प्राप्त करने से केवलज्ञान कर्म हैं, अथवा केवलज्ञान से स्वयं अभिन्न होने से आत्मा स्वयं ही कर्म हैं; अपने अनंतशक्तिवाले परिणमन स्वभावरूप उत्कृष्ट साधन से केवलज्ञान को प्रगट करता हैं, इसलिए आत्मा स्वयं ही करण हैं; अपने को ही केवलज्ञान देता हैं, इसलिए प्रात्मा स्वयं ही संप्रदान हैं; अपने में से मति-श्रुतादि अपूर्ण ज्ञान दूर करके केवलज्ञान प्रगट करता हैं और स्वयं सहज ज्ञानस्वभाव के द्वारा ध्रुव रहता हैं, इसलिए स्वयं ही अपादान हैं; अपने में ही अर्थात् अपने ही प्राधार से केवलज्ञान प्रगट करता हैं इसलिये स्वयं ही अधिकरण हैं। इस प्रकार स्वयं छह कारक रूप होता है, इसलिए वह 'स्वयंभू' कहलाता हैं।
४०
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com