Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (५) देशविरत चतुर्थ गुणस्थान वाला सम्यग्दृष्टि जीव अपनी आत्मा की शुद्ध परिणति को स्वसन्मुख पुरुषार्थ द्वारा बढ़ाता हुआ पंचम गुणस्थान को प्राप्त करता हैं। उसको आत्मा का निर्विकल्प अनुभव (चतुर्थ गुणस्थान की अपेक्षा) शीघ्र-शीघ्र होने लगता हैं और अप्रत्याख्यानावरण कषाय का अभाव हो जाता हैं। आत्मिक शांति बढ़ जाने के कारण पर से उदासीनता बढ़ जाती हैं तथा सहज देशव्रत के शुभ भाव होते हैं। अत: वह श्रावक के व्रतों का यथावत् पालन करता हैं, परंतु अपनी शुद्ध परिणति विशेष उग्र नहीं होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय का सद्भाव बने रहने से भावरूप मुनिपद का अधिकारी नहीं हो सकता हैं। यह अवस्था ही देशविरत नामक पंचम गुणस्थान हैं। इसे व्रताव्रत या संयतासंयत गुणस्थान भी कहते हैं, क्योंकि अंतरंग में निश्चय व्रताव्रत या निश्चय संयमासंयम रूप दशा होती हैं और बाह्य में एक ही समय में त्रसवध से विरत और स्थावरवध से अविरत रहता हैं। इस गुणस्थान वाले श्रावक के अणुव्रत नियम से होते हैं। ग्यारह प्रतिमाधारी आत्मज्ञानी क्षुल्लक, ऐलक व आर्यिका इसी गुणस्थान में आते हैं। (६) प्रमत्तसंयत जिस सम्यग्दृष्टि ज्ञानी पुरुष ने निज द्रव्याश्रित पुरुषार्थ द्वारा पंचम गुणस्थान से अधिक शुद्धि प्राप्त करके निश्चय सकल संयम प्रगट किया हैं और साथ मे कुछ प्रमाद भी वर्तता हैं, उसे प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती कहते हैं। अनंतानुबंधी आदिक बारह कषायों का प्रभाव होने के साथ संज्वलन कषाय और नोकषाय की यथासंभव तीव्रता रहने से संयम में मल को उत्पन्न करने वाला प्रमाद भी होता हैं, इसलिए इस गुणस्थान की प्रमत्तसंयत संज्ञा सार्थक हैं । इस गुणस्थान में मुनि महाव्रतों को अपेक्षा सविकल्प अवस्था में ही होते हैं, इसलिए यद्यपि इसमें उपदेश का आदान-प्रदान, आहारादि का ग्रहण, मलआदिक का उत्सर्ग, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आना-जाना इत्यादि अनेक प्रकार के विकल्प होतें हैं, तथापि साथ-साथ मुनियोग्य प्रांतरिक शुद्ध परिणति ५० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76