Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 30
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रवचनकार हाँ, निमित्तों का वर्गीकरण भी उदासीन और प्रेरक इन दो रूपों में किया जाता हैं । यद्यपि धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश और कालद्रव्य इच्छाशक्ति से रहित और निष्क्रिय होने से उदासीन निमित्त कहे जाते हैं; तथा जीव द्रव्य इच्छावान और क्रियावान होने से एवं पुद्गलद्रव्य क्रियावान होने से प्रेरक निमित्त कहे जाते हैं । तथापि कार्योत्पति में सभी निमित्त धर्मास्तिकाय के समान उदासीन ही हैं। प्राचार्य पूज्यपाद स्वामी ने इष्टोपदेश में कहा हैं : - नाज्ञो विज्ञत्वमायाति, विज्ञो नाज्ञत्वमृच्छति । निमित्तमात्रमन्युस्तु, गतेर्धर्मास्तिकायवत् ।। ३५।। अज्ञ को उपदेशादि निमित्तों द्वारा विज्ञ नहीं किया जा सकता और न ही विज्ञ को अज्ञ ही सकते हैं क्योंकि परपदार्थ तो निमित्त मात्र हैं जैसे कि स्वयं चलते हुए जीव और पुद्गलों को धर्मास्तिकाय होता हैं। — इसी को स्पष्ट करते हुए इसकी संस्कृत टीका में लिखा हैं : “ 'यहाँ यह शंका हो सकती हैं कि यों तो बाह्य निमित्तों का निराकरण ही हो जायगा । इसका उत्तर दिया हैं। अन्य जो गुरु आदि तथा शत्रु आदि हैं वे प्रकृत कार्य के उत्पादन में तथा विध्वंसन में सिर्फ निमित्त मात्र हैं । वस्तुतः किसी कार्य के होने व बिगड़ने में उसकी योग्यता ही साक्षात् साधक होती हैं । जिज्ञासु - - चारण ऋद्धिधारी मुनियों का उपदेश पाकर तो भगवान महावीर के जीव ने अपनी पूर्व शेर की पर्याय में आत्महित किया था । उसका ही परिणाम हैं कि वह जीव आगे जाकर भगवान महावीर बना। आप उपदेशरूप निमित्त का निषेध क्यों करते हैं ? प्रवचनकार हम उपदेशरूप निमित्त का निषेध कब करते हैं? हम तो निमित्त के कर्तृत्व का निषेध करते हैं। यदि उपदेश से ही आत्महित होता हैं तो उपदेश १. इष्टोपदेश (श्रीमद् राजचंद्र प्राश्रम, प्रगास ) ४२-४३ २८ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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