Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 16
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पं. टोडरमल - जिन जीवों के निश्चय का ज्ञान नहीं हैं तथा उपदेश देने पर भी होता दिखाई नहीं देता, उन्हें तो अकेले व्यवहार का उपदेश देते हैं; तथा जिन जीवों को निश्चय–व्यवहार का ज्ञान हो अथवा उपदेश देने पर होना संभव हो उन्हें निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश देते हैं। तथा चरणानुयोग में कहीं-कहीं कषायी जीवों को कषाय उत्पन्न करके भी पाप छुड़ाते हैं। जैसेपाप का फल नरकादि दुःख दिखाकर भय कषाय उत्पन्न करके तथा पुण्य का फल स्वर्गादिक में सुख दिखाकर लोभ कषाय उत्पन्न करके धर्म कार्यो में लगाते हैं। इसी प्रकार शरीरादिक को अशुचि बताकर जुगुप्सा कषाय कराते हैं और पुत्रादिक को धनादि का ग्राहक बताकर द्वेष कराते हैं; पूजा, दान, नामस्मरणादि का फल पुत्र धनादि की प्राप्ति का लोभ बताकर धर्म कार्यों में लगाते हैं। इस प्रकार चरणानुयोग में व्याख्यान होता हैं। अतः उसका प्रयोजन जान कर यथार्थ श्रद्धान करना चाहिए। दीवान रतनचंद - इसी प्रकार द्रव्यानुयोग की भी अपनी अलग पद्धति होती होगी? पं. टोडरमल - क्यों नही? द्रव्यानुयोग में जीवो को जीवादि तत्वों का यथार्थ श्रद्धान जिस प्रकार हो उस प्रकार युक्ति, हेतु, दृष्टान्तादिक से वर्णन करते हैं। क्योंकि इसमें यथार्थ श्रद्धान कराने का प्रयोजन हैं। जैसे स्व-पर भेद-विज्ञान हो, वैसे जीव अजीव का; एवं जैसे वीतराग भाव हो, वैसे प्रास्त्रवादिक का वर्णन करते हैं; आत्मानुभव की महिमा गाते हैं एवं व्यवहार कार्य का निषेध करते हैं। जो जीव आत्मानुभव का उपाय नही करते और बाह्य क्रियाकाण्ड में ही मग्न हैं, उनको वहाँ से उदास करके आत्मानुभव आदि में लगाने को व्रतशील संयमादि का हीनपना भी प्रगट करते हैं। शुभोपयोग का निषेध अशुभोपयोग में लगाने को नहीं करते हैं, किन्तु शुद्धोपयोग में लगाने के लिए करते हैं। इस प्रकार चारों अनुयोगों की कथन पद्धति अलग-अलग है, पर सबका एक मात्र प्रयोजन वीतरागता का पोषण हैं। कहीं तो बहुत रागादि छुड़ा कर अल्प रागादि कराने का प्रयोजन पोषण किया हैं, कहीं सर्व रागादि छुड़ाने का पोषण किया है, किन्तु रागादि बढ़ाने का प्रयोजन कही भी नहीं किया हैं। बहुत क्या कहे ? जिस प्रकार रागादि मिटाने का श्रद्धान हो वही श्रद्धान १४ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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