Book Title: Tattvagyan Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ २ शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति पं. टोडरमल - इस भवतरु का मूल एक, जानहू मिथ्याभाव। ताको करि निर्मूल अब , करीए मोक्ष उपाव।। इस संसाररूपी वृक्ष की जड़ एक मिथ्यात्व ही हैं। अतः उसको जड़-मूल से नष्ट करके ही मोक्ष का उपाय किया जा सकता हैं । ____ “जो जीव जैन हैं, जिन-प्राज्ञा को मानते हैं, उनके भी मिथ्यात्व क्यों रह जाता हैं ?” हमें आज यह समझना हैं, क्योंकि मिथ्यात्व का अंश भी बुरा हैं और सूक्ष्म मिथ्यात्व भी त्यागने योग्य हैं । दीवान रतनचंद - जो जीव जैन हैं, और जिन-प्राज्ञा को मानते हैं, फिर उनके मिथ्यात्व कैंसे रह जाता हैं ? जिनवाणी में तो मिथ्यात्व की पोषक बात ही नहीं हैं। पं. टोडरमल - ठीक कहते हो। जिनवाणी में तो मिथ्यात्व की पोषक बात नहीं हैं। पर जो जीव जिनवाणी के अर्थ समझने की पद्धति नहीं जानते, वे उसके मर्म को तो समझ नहीं पाते। अपनी ही कल्पना से अन्यथा समझ लेते हैं, अतः उनका मिथ्यात्व नहीं छूट पाता हैं। दीवान रतनचंद - तो क्या जिनवाणी के अर्थ समझने की कोई पद्धति भी हैं ? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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