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पं. टोडरमल - क्यों नहीं ? प्रत्येक काम करने और प्रत्येक बात समझनें का अपना एक तरीका होता है। जब तक हम उस तरीके को न समझ लें तब तक कोई भी काम अच्छी तरह न तो कर ही सकतें हैं और न कोई बात सही रूप में समझ ही सकतें हैं ।
दीवान रतनचंद - तो जिनवाणी का अर्थ समझने की पद्धति क्या हैं ?
पं. टोडरमल - जिनवाणी में निश्चय - व्यवहाररूप वर्णन हैं । निश्चय - व्यवहार का सही स्वरूप न समझने के कारण सामान्यजन उसके मर्म को नहीं समझ पाते हैं। इसी प्रकार जिनवाणी को चार अनुयोगों की पद्धति में विभक्त करके लिखा गया हैं । प्रत्येक अनुयोग की अपनी-अपनी पद्धति अलग-अलग हैं। जब तक हम उस पद्धति को समझेंगे नहीं तो जिनवाणी को पढ़ कर भी उसके मर्म को नहीं जान पायेंगे ।
दीवान रतनचंद कृपया आज हमें निश्चय - व्यवहार का स्वरूप और अनुयोगों की पद्धति के बारे में ही समझाइये।
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पं. टोडरमल - निश्चय - व्यवहार' की बात तो विस्तार से कुछ दिन पूर्व ही समझा चूकाँ हूँ तथा चार अनुयोगों के बारे में भी विस्तार से बताया था ।
दीवान रतनचंद - हा ! उनकी सामान्य जानकारी तो हमें हैं, पर हम तो आज उन्हें शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति के संदर्भ में समझना चाहते हैं ।
पं. टोडरमल आपको निश्चय - व्यवहार का स्वरूप ज्ञात हैं तो बोलिएँ निश्चय किसे कहते हैं और व्यवहार किसे ?
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दीवान रतनचंद “ यथार्थ का नाम निश्चय हैं और उपचार का नाम व्यवहार।” अथवा इस प्रकार भी कह सकते हैं कि “ एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप ही निरूपण करना निश्चय नय हैं और उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भाव स्वरूप वर्णन करना सो व्यवहार हैं । ”
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१. वीतराग - विज्ञान पाठमाला भाग ३, पाठ ८
२. वीतराग - विज्ञान पाठमाला भाग २, पाठ ४.
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