Book Title: Tat Do Pravah Ek
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 11
________________ २ । तट दो : प्रवाह एक भोज ने कहा-भला यह कैसे हो सकता है ? आप कल्पना कीजिए, दूकान एक हो तो कितनी भीड़ हो जाए। लोगों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को कौन कैसे पूरा करे ? आप मुनि हैं, व्यापार की कठिनाइयों को क्या जानें ? सूराचार्य ने कहा- यही तो मैं कहना चाहता हूं कि आप शासक हैं, दर्शनों की सूक्ष्मताओं को आप क्या जाने ? जिन दूकानों पर आपका अधिकार है उन्हें भी आप एक नहीं बना सकते तो भला जन- रुचि के विभिन्न स्रोतों को एक कैसे कर सकेंगे ? राजा चिन्तन की गहराई में डुबकी लगाए बिना नहीं रह सका । सब दार्शनिक अब अपने-अपने विचार- प्रसार में स्वतन्त्र थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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