Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 4
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ अपनी बात ) ( ११ है अन्यथा मोक्षमार्ग के लिए हम तो बिल्कुल अंधे थे । अतः इस पामर प्राणी पर तो पूज्य स्वामीजी का तीर्थंकर तुल्य उपकार है, जिसको यह आत्मा इस भव में तो क्या ? भविष्य के भवों में भी नहीं भूल सकेगा । इसप्रकार जो कुछ भी गुरु उपदेश से प्राप्त हुआ और अपनी स्वयं की बुद्धिरूपी कसौटी से परखकर स्वानुभव द्वारा निर्णय में प्राप्त हुआ, उसी का संक्षिप्त सार अपनी सीधी-सादी भाषा में प्रस्तुत करने का यह प्रयास है । मेरी उम्र ८१ वर्ष की है और इस कृति का जो भाग शेष है वह भी मेरे इस जीवनकाल में सम्पूर्ण तैयार हो और प्रकाशित होकर आत्मार्थी बन्धुओं को मोक्षमार्ग प्राप्त करने का सुगमता से मार्ग प्राप्त करावे यही एक भावना है । यह भाग संशोधित और परिवर्धित संस्करण मात्र ही नहीं है अपितु प्रकाशन के पूर्व इसमें बहुत कुछ परिवर्तन किया गया है। मैंने आदरणीय डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल से निवेदन किया कि वे इस पुस्तक को एक बार आद्योपान्त पढ़कर आगम के आलोक में पुस्तक में यदि कोई विसंगति अथवा भूल हो तो मुझे संकेत करें ताकि इसका प्रकाशन विशेष प्रामाणिक रूप में हो सके। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि उन्होंने मेरा निवेदन स्वीकार किया और अत्यन्त व्यस्त समय में से समय निकालकर इसको संशोधित करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया। इसके लिये मैं उनका विशेष आभारी हूँ । प्रस्तुत पुस्तक आत्मार्थी जीवों को यथार्थ मार्ग प्राप्त करने में कारण बनें तथा मेरा उपयोग जीवन के अन्तिम क्षण तक भी जिनवाणी की शरण में ही बना रहे एवं उपर्युक्त यथार्थ मार्ग मेरे आत्मा में सदा जयवन्त रहे इसी भावना के साथ विराम लेता हूँ । नेमीचन्द पाटनी --- Jain Education International *** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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