Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
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स्तोत्र-रास-संहिता
लास-भत्तिब्मरेण, गुण-कणमवि कित्तेहामि चिंतामणिव्व । अलमहव अचिंताणंत-सामत्थओसिं, फलिहइ लहु सव्वं वंछिअं णिच्छिअं मे ||३|| सयल जय हिआणं णाम मित्तेण जाणं, विहडइ लहु दुट्ठाणि? दोघट्ट थट्टं। णभिर सुर-किरीडूग्घिट्ट पायारविंदे, सययमजिअ संती ते जिणंदेभिवंदे ॥४|| पसरइ वर-कित्ती वड्डए देहदित्ती, विलसइ . भुवि मित्ती जायए सुप्पवित्ती। फुरइ परमतित्ती होइ संसार-छित्ती, जिण-जुअ-पय-भत्ती ही अचिंतोरु-सत्ती ||५|| ललिय-पय-पयारं भूरि-दिव्वंग-हारं, फुड-गण-रस भावोदार-सिंगार-सारं। अणि-मिसं-रमणिज्जं दंसणच्छेयभीया, इव पुण मणिबन्धाकासणट्टोवयारं ||६|| थुणह अजिअ संती ते कयासेस संती, कणय रय पिसंगा छज्जए जाणि मुत्ती । सरमस-परिरंभारंभि-णिव्वाण-लच्छो, घण-थण-घुसिणिक्कुप्पंक-पिंगीकयव्व |७|| बहुविह-णय मंगं वत्थु णिच्चं अणिच्चं सदसदणमिलप्पा लप्पमेगं अणेगं। इय कुणय विरुद्धं सुप्पसिद्ध तु जेसिं, वयणमवयणिज्जं ते जिणे संभरामि ||८|| पसरइ तिय लोए ताव मोहंधयारं, भमइ जयमसण्णं ताव मिच्छत्त-छण्णं । फुरइ फुड फलंताणंत णाणंसुपूरो, पयडमजिअ-संतिज्झाण सूरो ण जाव ॥९॥ अरि-करि-हरि-तिण्हुण्हंबु-चोराहि वाही,. समर-डमर-मारी-रुद्द-खुद्दोवसग्गा | पलयमजिअ संती कित्तणे झत्ति जंती, णिविडतर तमोहा भक्खरा लुंखिअव्व
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