Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 143
________________ १३२ दादा श्रीजिनदत्तसूरि स्तोत्र ॥ दादा श्रीजिनदत्तसूरि स्तोत्र (प्राकृत) ॥ ॐ ह्रीं गिव्वाणचक्क-प्फुड-मउडमणि-ग्घिठ्ठ-पायार विंदो, अंबा दिन्नप्पहाणा जुगवर-पय-संवाहणेगावतारी श्री क्ली ब्लू ठडढ विज्जू ! मयणयविजइ ! जोइणीचक्क थंभा, सड्ढाणं खत्तिएसाइवर सहस तीसेगलक्खाणं कत्ता ॥१॥ रोगा सोगाहि वाही-समर-डमर-संताप हत्तार ! देव ! , श्री विजा-मंत-तंतागर ! महि-महिआ ! बाहडं बाप सूअ ! ; वेराटी हुंबडक्खक्कुलतिलय-सुमंतीसवाछोग-पुत्त ! ; मिच्छालावी कुकभी-दमण-मिगवइ ! दत्तसूरींद ! एहि ॥२॥ विण्णाणी ! अहि सामी ! वर वरद ! वरं देहि णे दंसणं य, सुरक्खो ! सुप्पसण्णो भव विहिपहलग्गाण मव्वाण खिप्पं; अण्णाणं णाणदाया! कुरु कुरु मम संइहितं दिव्व कंती !, ही स्वाहां तेत्तिझाणा कुसलकर ! सया रक्ख मं रक्ख ताय ! ॥३|मंतं लक्खं सवायं किर सुह विहिणा बंमचेरं धरंतो, अंगावण्णा दिणंते विमलहियययो सुद्ध जावं जवंतोः णिच्चं एगासणी जो अमलतणु अकंपासणो धम्मरत्तो, सक्खं णासग्गदिट्ठी सुगुरुदरिसणं लेइ सो दुल्लहं वि ॥४॥ सच्चारित्ताण सीसेण जिणरयणसूरीणं मंतप्पमावा, भद्देणं थुत्तमेयं सिरि खरयर गच्छाहिवाणं कयं जे लद्धद्धीदं सपेम्म सरलयर हिआ सत्तहुत्तं श्रुणंति, णिच्च सुक्खं अखंडं अमिय यर सुहग्गं पगेते लहंति ||५||

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