Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 145
________________ १३४ श्री दादा गुरु गुण इकतीसा गुरु नाम सदा सुखदाता, जपत पाप कोटि कट जाता। कृपा तुम्हारी जिन पर होई, दुःख कष्ट नहीं पावे सोई ||८|| अभयदान दाता सुखकारी, परमातम पूरण ब्रह्मचारी । महाशक्ति बल बुद्धि-विधाता, मैं गुरु नित उठ तुम्हें मनाता ||९|| तुम्हरी महिमा है अतिमारी, टूटी नाव नई कर डारी । देश देश में स्तूप तुम्हारा, संघ सकल के हो रखवाला ||१०|| सर्व सिद्धि निधि मंगल दाता, देव परी सब शीश नमाता | सोमवार पूनम सुखकारी, गुरु दर्शन आवे नरनारी ||११|| गुरु छलने को किया विचारा, श्राविका रूप जोगणी धारा । कीली उज्जयिनी मझधारा, गुरु गुण अगणित किया विचारा ॥१२॥ हो प्रसन्न दीने वरदाना, सात जो पसरे मही दरम्याना। युगप्रधान जय जन हितकारा, अंबड, मान चूर्ण कर डारा ||१३|| मात अम्बिका प्रकट भवानी, मन्त्र कलाधारी गुरु ज्ञानी । मुगल पूत को तुरत जिलाया, लाखों जन को जैन बनाया ॥१४|| दिल्ली में पतशाह बुलावे, गुरु अहिंसा ध्वज फहरावे | भादो चौदस स्वर्ग सिधारे, सेवक जन के संकट टारे ||१५|| पूजे दिल्ली में जो ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे । ऐसे दादा साहब मेरे, हम चाकर चरणन के घेरे ||१६|| निशदिन भैरू गोरे काले, हाजिर हुकम खड़े रखवाले। कुशल करण लीनो अवतारा, सद्गुरु मेरे सानिधकारा ||१७|| डूबती


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