Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 126
________________ श्री गौतम स्वामीजी का रास ११५ अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांई डोले । मो आगल कोई जाण मणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥१५॥ वस्तु | वीर जिणवर वीर जिणवर नाण | सम्पन्न, पावापुर सुरमहिय, पत्त नाह संसार तारण, तिहिं देवइ निम्महिय, समवसरण बहु सुक्ख कारण, जिणवर जग उज्जोय कर, तेजहि कर दिनकार । सिंहासण सामी ठव्यो, हुओ तो जय जयकार ||१६|| भास | तो चढियो घणमाण गजे, इन्दभूइ भूदेव तो, हुँकारो करी संचरिय कवणसुजिणवर देवतो । जोजन भूमि समवसरण पेक्खवि प्रथमारंभ तो, दह दिस देखे विबुधवधू, आवंति सुररंभ तो ||१७|| मणिमय तोरण दंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो, वइर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो। सुर नर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो, चित्त चमक्किय चितवै ए, सेवंता प्रभु पाय तो ||१८|| सहसकिरण सामी. वीरजिण, पेखिय रूप विशाल तोः एह असंभव संभव ए, साचो ए इंद्रजाल तो । तो बोलावइ त्रिजगत गुरु, इंद्रभूइ नामेण तोः श्री मुख संसय सामी सवे, फेडे वेद पएण तो ||१९|| मान मेलि मद ठेलि करी भगतिहि नाम्यो सीस तो। पंच सयांसुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सीस तो । बंधव संजम सुणिवि करी अगनिभूइ आवेय तोः नाम लेई आमास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥२०|| इण अनुक्रम गणहर रयण थाप्या

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