Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 132
________________ शत्रुजय तीर्थ का रास १२१ ॥ शत्रुजय तीर्थ का रास ॥ - (दोहा ) श्री ऋषहेसरपायनमी । आणी मन आनंद। रासभणुं रलियामणु । सेजेनो सुखकंद ||१|| संवतचार सतोतरे। हुवा धनेसरसूर । तिण सेव॒जमहातम कियो शिलादित्य हजूर ||२|| वीरजिणंद समोसा । सेजउपर जेम । इंद्रादिक आगलि कह्यो। सेजेमहात्म्य एम ॥३|| सेत्रुज तीरथ सारिषो । नहिं छे तीरथ कोय । स्वर्गमृत्यु पाताल में । तीरथ सघला जोय ||४|| नामे नवनिधि संपजे । दीठां दुरित पुलाय । भेटतां भवमय टले । सेवंतां सुख थाय ||५|| जंबूनामे द्वीप ए । दक्षिण भरत मझार । सोरठ देश सुहामणो | तिहां छे तीरथसार ||६|| || ढाल-पहली || ( रामगिरि-राग) सेव॒जोने श्री पुंडरीक । सिद्धक्षेत्र कहुं तहतीक । विमलाचलने करुं परणाम । ए सेजेजेना इकवीस नाम ||१|| सुरगिरिने महागिरि पुण्यरास। श्रीपद पर्वत इंद्रप्रकास । महातीरथ पूरवे सुखकाम। ए०||२|| सासतोपर्वतने दृढ़शक्ति । मुक्ति निलो तिणकीजे भक्ति । पुष्फदंत महापदम सुठाम । ए०॥३|| पृथ्वीपीठसुभद्र कैलाश । पातालमूल अकर्मकतास।

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