Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 140
________________ शत्रुजय तीर्थ का रास १२९ काती सात दिन तप कियां, रतन हरण पाप जायोजी ॥से०||३|| कांसी पीतल तांबा रजतनी, चौरी कीधी जेणोजी || सात दिवस पुरमढ करे, तो छूटे गिरि एणोजी ।।से०||४|| मोती प्रवाला मूगीया, जिण चौर्या नर नारोजी । आंबिल करि पूजा करे, त्रण टंक शुद्ध आचारोजी ॥ से० ॥५।। धान पाणी रस चोरिया, जे भेटे सिद्धक्षेत्रोजी || सेव॒जे तलहटी साधुने, पडिलाभे शुध चित्तोजी | से० ||६|| वस्त्राभरण जिणे हर्या, ते छूटे इण मेलोजी ॥ आदिनाथ नी पूजा करे, प्रह ऊठी बहु वेलोजी | से० ॥७॥ देव गुरुनो धन जे हरे, ते शुद्ध थाये एमोजी || अधिको द्रव्य खरचे तिहां, पात्र पोषे बहु प्रेमोजी | से० ॥८|| गाय मेंस घोड़ा मही, गजनो चोरणहारोजी । दीये ते वस्तु तीरथे, अरिहंत ध्यान प्रकारोजी ॥ से० ॥९|| पुस्तक देहरा पारका, तिहां लिखे आपणो नामोजी || छुटे छम्मासी तप कियां, सामायिक तिण ठामोजी | से० ॥१०|| कुंवारी परिव्राजिका, सधव अधव गुरु नारोजी | व्रत भांजे तिणने कह्यो, छम्मासी तप सारोजी ॥ से० ||११|| गौ विप्र स्त्री बालक ऋषि, एहनो घातक जेहोजी ॥ प्रतिमा आगे आलोवतां, छूटे तप करी तेहोजी || से० ॥१२॥

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