Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 139
________________ १२८ स्तोत्र-रास-संहिता (दोहे) ___ वलि सेत्र ज महातम कहुं, सांमलो जिम छे तेम । सूरि धनेसर इम कहे, महावीर कह्यो एम ||१|| जेहवो तेहवो दरसणी, सेत्र जे पूजनीक । भगवंतनो वेस वांदतां लाभ हुवे तहतीक ||२|| श्रीसेत्र जा ऊपरे, चैत्य करावे जेह । दल परमाण समोलहे, पल्योपम सुखतेह ॥३|| सेत्रुजे ऊपर देहरो, नवो नीपावे कोय । जिर्णोद्धार करावतां, आठ गुणोफल होय |४|| सिर ऊपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार । चक्रवर्तिनी स्त्री थइ, शिव सुख पामे सार ॥५॥ काती पूनिम सेत्र जे, चढिने करे उपवास । नारको सो सागर समो, करें करमनो नाश । |६|| काती परव मोटो कह्यो, जिहां सिद्धा दशक्रोड । ब्रह्म स्त्री बालक हत्या, पापथी नाखे छोड ||७|| सहस लाख श्रावक मणी, भोजन पुण्य विशेष । सेत्र जे साधु पडिलामतां, अधिको तेहथी देख ||८|| ॥ ढाल-पांचवीं ॥ ( धन-धन अयवंती सुकुमालने-एदेशी ) सेत्र जे गयां पाप छुटीये, लीजे आलोयण एमोजो। तप जप कीजे तिहां रही, तीर्थंकर कह्यो तेमोजी । से० ||१|| जिण सोनानी चौरी करी, ए आलोयण तासोजी। चैत्रीदिन सेत्र जे चढी, एक करे उपवासोजी। से० ॥२|वस्तु तणी चौरी करी, सात आंबिल सुध थायोजी।

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