Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 53
________________ ४२ स्तोत्र-रास-संहिता स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिद-पीक्षितोऽसि ॥ २७ ॥ उच्चैरशोक-तरुसंश्रितमुन्मयूख,-माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम्। स्पष्टोल्लसत्किरण-मस्ततमो-वितानं, बिम्ब रवेरिव पयोधर-पार्श्ववति ॥ २८ ॥ सिंहासने मणि-मयूखशिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्विलसदंशुलता-वितानं, तुंगोदयाद्रिशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥ २९ ॥ कुन्दावदात-चलचामर-चारुशोभ, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् । उद्यच्छशाङ्कशुचि-निर्झरवारिधार-मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥३०|| छत्र-त्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्त, ,मुच्चैःस्थितं स्थगित-भानुकर-प्रतापम् । मुक्ताफल प्रकरजालविवृद्धशोमं, प्रख्यापयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१|| उन्निद्र-हेम-नव-पङ्कज-पुञ्ज-कान्ति, पर्युल्लसन्नखमयूख-शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥३२॥ इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र ! धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रमा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, ताक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि ।३३। ३च्योतन्मदाविलविलोलकपोल-मूल, मत्त-भ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्धकोपम् । ऐरावताममिममुद्धतमापतन्तं, दृष्ट्वा . भयं भवति नो भवदा श्रितानाम् ||३४|| भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वल - शोणिताक्त, - मुक्ताफल-प्रकर भूषित

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