Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 120
________________ श्री गौडीपार्श्वनाथ-स्तोत्रम् १०९ 'पूजीस प्रणमीश तेहना पाया, प्रह उठीने थुणजे जी ( एम०) ||१५|| सुहणो देईने सुर चाल्यो आपणे थानक पहुंतो जो । पाटण मांहें सारथंबाहु, हीडे तुरकने जोतो जी (एम० ) ||१६|| तुरकै जातां दीठो गोठी, चोखा तिलक लिलाड़े जी । संकेत पहुतो साचो जाणि, बोलावै बहु लाडै जी (एम०) ||१७|| मुझ घरि प्रतिमा तुझनें आपु, पास जिणेसर केरी जी । पांचसै टक्का जो मुझ आपै, मोल न मांगु फेरी जी (ए०) ||१८|| नाणो देई प्रतिमा लेई, थानक पहुंतो रंगै जी । केसर चन्दन मृगमद घोली, विधसुं पूजा रंगै जी (एम०) ||१९|| गादी रूडी रूनी कीधी, ते मांहि प्रतिमा राखै जी । अनुक्रम आव्या परिकर माहें, श्री संघ ने सुर साखै जी (एम०) ||२०|| उच्छव दिन-दिन अधिका थाये, सत्तर भेद सनात्रो जी || ठाम-ठाम ना दरसण करवा, आवै लोक. प्रभातो जी (एम०) ||२१|| (दूहा) ॥ इक दिन देखे अवधिसुं, परिकर पुरनो भङ्ग । जतन करूं प्रतिमा तणो, तीरथ अछ अमङ्ग ॥२२॥ सुहणो आपै सेठने, थल अटवी उज्जाड़ । महिमा थास्यै अति घणि, प्रतिमा तिहां पहुँचाड ||२३|| कुशल खेम तिहां अछे, तुझने मुझने जाणि । संका छोड़ी काम करि, करतो मकर संकाणि ||२४|| (ढाल) ॥ पास मनोरथ पूरा करे, बाहण एक वृषभ जोतरै । परिकरथी परियाणों कर, एक थल

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