Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 119
________________ १०८ स्तोत्र-रास-संहिता हुंतीजी । अश्वनी भूमि अश्वनी पोडा, अश्वनी वाल विगूती जी (गु०) ||५|| जागंतो जक्ष जेहनै कहिये, सुहणो तुरकर्ने आपे जी । पास जिनेसर केरी प्रतिमा, सेवक तुझ संतापे जी (गु० ) ॥६॥ प्रह ऊठीने परगट करजे, मेघा गोठी ने देजे जी ! अधिको म लेजे ओछो म लेजे, टक्का पांचसै लेजे जी (गु० ) ||७|| नहिं आपिस तो मारीस मुरडीस, मोर बंध बंधास्ये जी । पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुझ, लछि ' घणी घर जास्यै जी (गु०) ||८|| मारग पहिलो तुझनें मिलस्यै, सारथ वाह जे गोठी जी । निलवट टीलो चोखा चेड्यो, वस्तु वहै तसु पोठी जी (गु०) |९|| ( दूहा ) || मनसु वोहतो तुरकडो, मानें वचन प्रमाण ! बीबी ने सुहणा तणो, संभलावै सहिनाण ||१०|| बीबी बोले तुरकने, बड़ा देव है कोय । अबसताव परगट करो नहीतर मारै सोय ||११|| पाछली रात परोडीये, पहली वांधै पाज | सुहणा माहे सेठने, संभलावै जक्षराज ||१२|| ( ढाल ) एम कही जक्ष आयो राते, सारथवाहने सुहणे जी । पास तणी प्रतिमा तुं लेजे, लेतो सिर मत धुणे जी .( एम० ) ||१३|| पांचसै टक्का तेहने आपे, अधिको म आपिस वारू जी । जतन करी पहुंचाडे थानिक प्रतिमा गुण संभारेजी (एम० ) ||१४|| तुझने होसी बहु फलदायक, भाई गोठी सुणजे जी ।

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