Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain

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Page 86
________________ महावीराष्टक स्तोत्र . मणिमा-जाल-जटिलं, लसत्पादाम्भोजद्वयमिह यदीयं तनु-भृताम् । भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||३|| यदर्चामावेन प्रमुदितमना ददुर इह, क्षणादासीत् स्वर्गी गुण-गणसमृद्धः सुख-निधिः । लभन्ते सद्भक्ता शिव-सुख-समाज किमु तदा ? महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||४|| कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगततनुर् ज्ञान-निवहो, विचित्रात्माऽप्येको नृपतिवर-सिद्धार्थ-तनयः । अजन्माऽपि श्रीमान् विगत भवरागोऽभुतगतिर, महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥५|| यदीया वाग गंगा विविध-नय-कल्लोलविमला, बृहज्ज्ञानाम्मोमिर्जगति जनतां या स्नपयति । इदानीमप्यता बुधजन-मरालैः परिचिता, महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||६|| अनिर्वारोद्रेकस्त्रिभुवनजयी काम-सुभटः, कुमारावस्थायामपि निजबलाद्यन विजितः । स्फुरन्नित्यानन्द-प्रशमपदराज्याय स जिनः, महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||७|| महामोहातंक-प्रशमनपराऽऽकस्मिकं-भिषग, निरापेक्षो बन्धुर् विदितमहिमा मंगल करः । शरण्यः साधूनां भव-भयभृतामुत्तम-गुणो, महावीरस्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||८|| महावीराष्टकं स्तोत्रं, भक्त्या मागेन्दुना कृतम् । यः पठेच्छृणुयान्चापि, स याति परमां गतिम् ||९||

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