Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
View full book text
________________
१०५
श्री शारदाऽष्टकम्
१०५ ___|| सरस्वती-स्तोत्रम् ॥ सकललोकसुसेवितपत्कजा वरयशोजितशारदकौमुदी । निखिलकल्मषनाशनतत्परा जयतु सा जगतां जननी सदा ||१|| कमलगर्मविराजितभूघना मणिकिरीटसुशोभितमस्तका । कनककुण्डलभूषितकणिका । जय० ॥२॥ वसुहरिद्गजसंस्नपितेश्वरी विधृतसोमकला जगदोश्वरी । जलजपत्र समानविलोचना । जय० ॥३॥ निजसुधैर्य जितामरभूधरा निहितपुष्करवृदलसत्करा । समुदितार्कसुदक्तनुवल्लिका । जय० ॥४|| विविधवांछितकामदुघाभुता, विशदपाहदान्तरवासिनी । सुमतिसागरवर्धनचन्द्रिका । जय० ॥५॥ इति श्वेतपद्मासनादेवी श्वेतपुष्पामिशोभिता । श्वेताम्बरधरा नित्यं श्वेतगंधानुलेपना ||१|| श्वेताक्षी शुक्लवस्त्रा च श्वेतचंदनचचिता । वरदा सिद्वगंधर्वशशिमि स्तूयसे सदा ||२|| स्तोत्रेण च तथा देवी गीर्धात्री च सरस्वती ये पठन्ति त्रिकालं च सर्वविद्यां लमन्ति ते ||३|| इति ॥ .. . ॥ श्री शारदाऽष्टकम् ॥
चन्द्रानने ! नमस्तुभ्यं वाग्वादिनि ! सरस्वति ! मूढत्वं हर मे मातः ! शारदे ! वरदा भव ||१|| दिव्या म्बरसुशोभाढ्ये ! हंससत्पक्षवाहिनी । ज्ञानं मनोज्ञ मे देहि सौख्यं यच्छ सुरेश्वरि ! ||२|| कर्णावतंससंयुक्त !
Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148