Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
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स्तोत्र-रास-संहिता
बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं मियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४३|| स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्तया मया रुचिर-वर्ण विचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्र, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४४||
- कल्याणमन्दिर-स्तोत्र
- कल्याणमन्दिरमुदारमवद्यभेदि, भीता भयप्रदमनिन्दितमङ्घ्रिपद्मम्। संसारसागर-निमजदशेष - जन्तु, पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ||१|| यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतो, स्तस्याहमेषकिल संस्तवनं करिष्ये ॥२॥ सामान्यतोऽपि तव वर्ण यितुं स्वरूप-मस्मादृशाः कथमधीश ! भवन्त्यधीशाः ! | धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्य दि वा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं किल धर्मरश्मे ? ||३|| मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत । कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मान्मीयेत केन जलधेननु रत्न-राशिः ? ||४|| अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ ! जड़ाशयोऽपि, कर्तुंस्तवलसदसंख्यगुणाकरस्य ।
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