Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
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कल्याण मन्दिर-स्तोत्र
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• ||२०|| स्थाने गभीरहृदयोदधिसंभवायाः, पीयूषतां तव गिरः समुदीरयन्ति । पीत्वा यतः परमसंमदसंगमाजो, भव्या जंति तरसाऽप्यजरामरत्वम् ||२१|| स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतंतो, मन्ये वदंति शुचयः सुरचामरौघाः। येऽस्मै नतिं विदधते मुनि-पुंगवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्धमावाः ॥२२॥ श्यामं गभीरगिरमुज्ज्वलहेमरत्न, सिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयंति रमसेन नदंतमुच्चे, - श्चामी-करादिशिरसीव नवांबुवाहम् ।।२३|| उद्गच्छता तव शितिद्य तिमण्डलेन, लुप्तच्छदच्छ-विरशोकतरुर्बभूव । सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग !, नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि ! ||२४|| भो भोः प्रमादमव-धूय भजध्वमेन, मागत्य निवृतिपुरी प्रति सार्थवाहम् । एतन्निवेदयति देव ! जगत्त्रयाय, मन्ये नदन्नभिनमः सुरदुन्दुभिस्ते ॥ २५ ॥ उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ !, तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः। मुक्ताकलापकलितोच्छ्वसितातपत्र, व्याजास्त्रिधा धृततनु-ध्रवमभ्युपेतः ॥२६|| स्वेन प्रपूरितजगत्त्रय-पिण्डितेन, कांतिप्रतापयशसामिव सच्चयेन । माणिक्यहेमरजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण भगवन्नभितोविमासि ॥२७॥ दिव्यस्रजो जिन ! नमत्त्रिदशाधिपाना, मुत्सृज्य रत्नरचितानपि मौलिबंधान | पादौ अयंन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्संगमे सुमनसो न रमन्त
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