Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
View full book text
________________
श्रीभक्तामर स्तोत्र
४३
भूमिमागः । बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥३५॥ कल्पान्त-काल-पवनोद्धतवहिकल्पं, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं, त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ||३६|| रक्त क्षणं समदकोकिल-कण्ठनीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्कस-त्वन्नामनाग-दमनी हृदि यस्य पुंसः ॥३७|| वलगत्तुरंङ्ग-गजगर्जित-भीम-नाद, -माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम् उद्यद्दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति ॥३८|| कुन्ताग्रभिन्न-गज-शोणित-वारिवाह, वेगाव-तार-तरणातुरयोधमोमे । युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्-त्वत्पादपङ्कजवनायिणो लभन्ते ॥३९|| अम्मोनिधौ क्षुभितभीषणनचक्रं, पाठीनपीठ-भयदोल्वण-वाडवाग्नौ रङ्गत्तरङ्ग शिखर स्थित-यानपात्रा,-स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ॥४०|| उद्भत भीषण-जलोदर-भार भुग्नाः , शोच्यां दशामुपगताश्च्युत-जीविताशाः । त्वत्पाद-पङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा, मा भवन्ति मकरध्वज-तुल्य रूपाः ॥४१|| आपाद-कण्ठ-मुरु-शृंखल-वेष्टितांगा, गाढं बृहन्निगड-कोटि-निघृष्टजंघाः । त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विगत-बन्ध-मया भवन्ति ॥४२॥ मत्तद्विपेन्द्रमृगराज - दवानलाहि, - संग्राम-वारिधिमहोदर
Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148