Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
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वृद्धनवकार-स्तोत्र
१९.
हरउ।४ापणपन्ना य दसेव य, पन्नट्ठी तह य चेव चालीसा। रक्खंतु मे सरीरं-देवासुरपण-मिआ सिद्धा ||५|| ॐ हरहुंहः सरसुंसः हरहुंहः तह य चेव सरसुंसः । आलिहिय-नामगन्मं, चक्कं किर सव्वओ भदं ॥६|| ॐ रोहिणि पन्नत्ति, वज्जसिंखला तह य वज्ज-अंकुसिआ |चक्केसरि नरदत्ता,कालि महाकालि तह गोरी ||७|| गंधारी महज्जाला माणवि वइरु? तह य अच्छुत्ता। माणसि महमाणसिआ, विज्जादेवीओ रक्खंतु ॥८॥ पंचदस-कमम्भू मिसु, उप्पन्नं सत्तरी जिणाणं सयं । विविह रयणाइवन्नो-वसोहिअं हरउ दुरिआई ||९|| चउतीस-अइसयजुआ अट्ठमहापाडिहेर-कय-सोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाएअव्वा पयत्तेणं ॥१०|| ॐ वरकणय-संख-विद्दम-मरगयघणसन्निहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामर पूइयं वंदे स्वाहा ||११|| ॐ भवणवइ वाणवंतर, जोइसवासी विमाणवासी अ । जे केवि दुट्ठ-देवा, ते सव्वे उवसमंतु ममं स्वाहा |१२|| चंदण-कप्पूरेणं, फलए लिहिऊण खालिअं पीअं। एगंतराइ-गहभूह-साइणिमुग्गं पणासेइ ।।१३|| इय सत्तरिसयं जंतं, सम्मं मंतं दुवारि पडिलिहिअं। दुरिआरि विजयवंतं, निमंतं निच्चमच्चेह ||१४||
वृद्धनवकार-स्तोत्र किं कप्पत्तरु रे अयाण,चिंतउ मण-भिंतरि,किं चिंतामणि कामधेनु आराहो बहुपरि । चित्तावेली काज किसे, देसांतर
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